Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 415
________________ * सरस बतका सुणो, शिवराज ८. तिण हरियणापुर नगरी तो मोटो हेमवंत नीं परं जी , सोरठा इम दीस, महाहिमवंत तणी परं । अवनीस, शेष धराधिप पेक्षया ॥ मंदर ते मे गिरि । मेरू जे ॥ ९. राज-वर्णक मोटो शिव १०. पर्वत मलय संवादि, महेंद्र ते शक्रादि, तदवत सार प्रधान ११. *शिव वसुधाधिप नैं हुंती जी, राणी धारणी नाम । अति सुकुमाल सुहामणी जी वर्णक अति अभिराम ॥ J ऋषि नीं रे ।। (ध्रुपदं ) तो शिव नामै राजान | वर्णक अति सुविधान ।। सोरठा १२. वर कर पग सुकुमाल, वर्णक अधिक विशाल, इत्यादिक राणी तणो । अन्य स्थान धी जाणवू ।। १३. *पवर पुत्र शिवराय नों जी, । शिवभद्र नाम कुमार थो जी, १४. जिम सूर्यकेत कुमार नों जी धारणी नो अंगजात अति सुकुमाल आख्यात | आयो अधिकार। जाय चिंता करतो राज नी जी, विचरं एह कुमार ।। सोरठा इहां ॥ १५. कर प त सुकुमाल, लक्षण व्यंजन गुण सहित। इत्यादिक सुविशाल, रायपसेणी' थी करतो १६. विचर चित, सूपंकेत वणी इण वचने इस संत इहां कहिवो शिवभद्र Jain Education International *लय : अभड़ भड़ रावणा १. सू. ६७३,६७४ २. अंगसुत्ताणि में 'जनपद' शब्द नहीं है । परं ने ॥ १७. ते शिवभद्र कुमार, शिव राजा ने सार, १८. राष्ट्र देश नीं जाण, हुंतो वर युवराज पद । राज-चित करतो यको || बल वाहन भंडार नीं। अंतेवर नीं वली ॥ चितवना करतो छतो । बिचरै अहनिशिहेव, शिवभद्र नाम कुमार ते ॥ २०. *तिण अवसर शिवराय ने जी, अन्य दिवस किणवार कोठागार पिछाण, पुर १६. जनपद नी स्वयमेव, मध्य निशि काल समय विषे राज धुरा चितवतां पार | २१. एहवे रूपे आतम नें विषे, जाव उपनो मन में विचार ! छै मुझ जूना तप तणां जी, दान नां फल वलि सार ॥ । ८. तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे सिवे नामं राया होत्यामहया हिमवंत वण्णओ । ६. राजवर्णको वाच्य इति सूचितं तत्र महाहिमवानिव महान् शेषराजापेक्षया १०. मलयः पर्वतविशेषो मन्दरो शक्रादिदेवराजस्तवत्सारः प्रधान ( वृ० प० ५१२) मेरुः महेन्द्रः व स तथा ( वृ० प० ५१९) ११, तस्स णं सिवस्स रण्णो धारिणी नाम देवी होत्थासुकुमालपाणिपाया वण्णओ । १२. सुकुमाल यन्नओ' ति अनेन च 'सुकुमालपाणिपा त्यादी राज्ञीवर्णको वाच्य इति सूचितं । ( वृ० प० ५१६ ) १३. तस्स णं सिवस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए अत्तए सिवभद्दे नाम कुमारे होत्था - सुकुमालपाणिपाए १४. जहा सूरियकंते जाव १५. सुकुमालपाणिपाए लक्ष्मणजणगुणोबवे इत्यादिना यथा राजप्रश्नकृताभिधाने ग्रन्थे सूर्यकान्तो राजकुमारः (२०१० ५१९) १६. ' पच्चुवेक्खमाणे पच्चुवेक्खमाणे विहरइ' इत्येतदन्तेन वर्णकेन वर्णितस्तथाऽयं वर्णयितव्यः । (बृ० १० ५१९) १७, से णं सिवभद्दे कुमारे जुवराया यावि होत्या सिवस्स रन्नो ( वृ० प० ५१९) १८,१९. रज्जं च रठ्ठे च बलं च वाहणं च कोसं च कोद्वारं च पुरं च अतेउरं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणेपच्चुवेक्खमाणे विहरs | (० ११०५०) २०. तए णं तस्स सिवस्स रण्णो अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि रज्जधुरं चितेमाणस्स २१. अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव (सं० पा० ) समुप्पज्जित्था - अत्थिता मे पुरा पोराणाणं कल्लाणफलवित्तिविसेसे For Private & Personal Use Only श० ११: उ० ६, ढाल २२७ ३६६ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490