Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
३१. वलि करिने विश्वानर पूजै, पूजी अग्नि उदार जी । आया अतिथि तणी कर पूजा, पछे करें निज आहार जी ।
३२. तिण अवसर शिवराज ऋषी ते दुजो छ सुविचार जी। अंगीकार करीने विचरे, द्वितीय पारण अधिकार जी |
३३. भूमि आतापन को बली ने इम जिम प्रथम पारणे भाख्यो, ३४. वरं दक्षिण दिशि जल छांटे, जम
बल्कस पहिरी तेह जी । तिम
इहां सर्व कहेह जी ॥
नामे महाराय जो ।
शेष तिमज जाव अतिथि पूजन करें पारणो ताय जी ।।
1
३५. तिण अवसर शिवराज ऋषी ते तृतीय छठ सुविचार जी अंगीकार करीनें विचरे, हिव पारण अधिकार जी ॥
३६. भूमि आतापन थकी वली ने वस्फल पहिरी तेह जी इस जिम प्रथम पारणे भारूपो तिम इहां सर्व कहे जी ॥ ३७. वरं पश्चिम दिशि जल छोटे वरुण नामे महाराय जी । शेष तिमज जाय अतिथि पूजनें करें पारणो वाय जी ॥
३८. तिण अवसर शिवराज ऋषी ते तु छठ घर प्यार जी। अंगीकार करीने विचरं हिव पारण अधिकार जी ॥
३६. भूमि आतापन थकी वली ने, वल्कल पहिरी तेह जी । इस जिम प्रथम पारणं भाख्यो, तिम इहां सर्व कह जी ॥ ४०. णवरं उत्तर दिशि जल छांटे, वेसमण महाराय जी । शेष तिमज जाव अतिथि पूजन कर पारणो ताय जी ॥ ४१. ढाल भली दोयसौ गुणतीसमी, भिक्षु भारीमाल ऋषिराय जी । संपति दो सौ बीस अज्जा मुनि, 'जय जश' हरष सवाय जी ॥
,
Jain Education International
३१. बलदेव करे करेला अतिहिपूर्व करे, करेता तओ पच्छा अप्पा आहारमाहा रेति । (श० ११०६४) 'बलिवहस्सदेव करेइ' ति बलिना वैश्वानरं पूजयतीत्यर्थः 'अतिहिपूयं करेइ' त्ति अतिथेः- आगन्तुकस्य पूजा करोतीति । ( वृ० प० ५२० ) ३२. तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छटुंक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । ( ० ११०६५) तए णं से सिवे रायरसी दोच्चे छटुक्खमणपारणगंसि २२. भावभूमी पच्योर, पन्चोरहिता एवं जहा
पढमपारणगं
दिसं पोचले, दाहिगाए "सेसं तं चेव जाव तओ (STO PPIRE) छट्ठक्खमणं उव
३४. नवरं (सं० पा०) दाहिण दिसाए जमे महाराया" पच्छा अपणा आहारमाहारे । ३५. तए णं से सिवे रायरिसी तच्चे संपज्जित्ताणं विहरइ । (० ११०६७) तए णं से सिवे रायरिसी तच्च छटुक्खमणपारणगंसि ३६, ३७. आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता वागलवत्थनियत्थे सेसं तं चैव नवरं (सं० पा० ) पच्चत्थिमं दिसं पोक्खेइ, पच्चत्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसि सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारे । (म० ११०६८) ३८. तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छटुक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । ( श० ११/६६ ) तणं से सिवे रायरसी चउत्थे छट्ठक्खमणपारणगंसि
३६, ४०. आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता वागलवत्थनियत्थे एवं तं चैव नवरं (सं० पा० ) उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चैव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ।
( श० ११।७० )
For Private & Personal Use Only
श० ११, उ० ६, ढाल २२६ ४०७
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/2b8a4f8c58b12ba4e5570a6eea79cb90e8c784cbf7f695729ebd59554c0ea0e1.jpg)
Page Navigation
1 ... 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490