Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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चयण द्वार (३१) १०. प्रभु ! अन्तर-रहित ते जंत, नीकली किण गति उपजत ?
जिन कहै पन्नवणा मांहि, पद छठे कह्यो छै ताहि ।। ११. वनस्पतिकाय नों विचार, उद्वर्तन कह्यो तिवार । तिमहिज सर्व ए भणवो, उत्पल नों नीकलवो थुणवो ।।
मूलादिक नै विषे सर्व जीव नों उपपात द्वार (३२) ६२. अथ सर्व प्राण भगवान ! सर्व भूत जीव सत्व जान ।
उत्पल मूल-जीवपण जोय, पर्वे ऊपनां ते सोय ।। ६३. उत्पल कंदपणेंज उपनां, उत्पल नालपणेंज प्रमना ।
उत्पल पत्रपणे सह जीवा, पूर्वे ऊपनां छै अतीवा ।। १४. उत्पल नां. केसरपण, कणिका पासै अवयव जेह ।
उत्पल कणिकापणें कहाय, मध्य भाग बीज कोस ताय ॥
१०, ६१. ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उवट्टित्ता कहि
गच्छंति ? कहिं उववज्जति......एवं जहा वक्कंतीए (प० ६।१०३,१०४) उव्वट्टणाए वणस्सइकाइयाणं तहा भाणियव्वं ।
(श० ११।३६) 'वक्कंतीए' त्ति प्रज्ञापनायाः षष्ठपदे ।
(वृ० प०५१३) ६२. अह भंते ! सव्वपाणा, सव्वभूता, सव्वजीवा,
सव्वसत्ता उप्पलमूलत्ताए, ६३. उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालत्ताए, उप्पलपत्तत्ताए,
६५. उत्पल थिबुकपणे करि जेह, जिहां पत्र ऊपजै तेह।
पूर्व काल विषे सर्व जीवा, ऊपनां छै प्रभजी ! अतीवा ?
१४. उप्पलकेसरत्ताए, उप्पलकण्णियत्ताए,
'उप्पलकेसरत्ताए' त्ति इह केसराणिकर्णिकायाः परितोऽवयवाः 'उप्पलकन्नियत्ताए' त्ति इह तु कणिका -बीजकोशः
(वृ० ५० ५१३) ६५. उप्पलथिभगत्ताए उववन्नपुवा ?
'उप्पलथिभुगत्ताए' त्ति थिभुगा च यतः पत्राणि प्रभवन्ति ।
(वृ० प० ५१३) ६६. हंता गोयमा ! असति अदुवा अणंतखुत्तो।
(श० ११०४०) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० १११४१)
६६. तब हता कहै जगतार, सहू ऊपनां बारंबार ।।
अथवा ते वार अनंत, सेवं भंते ! सेवं भंत ! ६७. कह्यो उत्पल उद्देशो एह, एकादशमा शतक नों कहेह।
प्रथम उद्देशे जगीस, उगणीस वर्ष इकवीस ।। १८. दोयसौ नै पच्चीसमी ढाल, भिक्ष भारीमाल गुणमाल । ऋषिराय तणे सुपसाय, सुख संपति 'जय-जश' पाय ।।
एकादशशते प्रथमोद्देशकार्थः॥११॥
ढाल : २२६
१. अष्ट उद्देशा नैं विषे, नानापणुंज भेद ।
संग्रह अर्थे छै इहां, गाथा तीन उमेद ॥ २. *पृथक धनुष सालु नी तास, पृथक गाउ कहियै पलास । शेष छहूं नी इम अवगान, योजन सहस्र अधिक पहिछान ।।
३. कुंभी नालिका पलास मांय, तीन लेश्या सुर उपजै नाय ।
शेष पंच में लेश्या च्यार, उपजै देव वणस्सइ सार ।।
१. एतेषु चोद्देशकेषु नानात्वसंग्रहार्थास्तिस्रो गाथा:---
(वृ० ५० ५१४) २. सालंमि धणुपुहत्तं होइ पलासे च गाउयपुहत्तं । जोयणसहस्समयिं अवसेसाणं तु छण्हंपि ।
(वृ० ५० ५१४) ३. कुंभीए नालियाए होति पलासे य तिन्नि लेसाओ। चत्तारि उ लेसाओ अवसेसाणं तु पंचण्हं ।
(वृ० ५० ५१४) ४. कुंभीए नालियाए वासपुहत्तं ठिई उ बोद्धव्वा । दसवाससहस्साई अवसेसाणं तु छण्हपि ।
(वृ० ५० ५१४)
४. कुंभी नालिका नी सुविमास, पृथक वर्ष कही स्थिति तास ।
शेष छहुँ वर्ष दश हजार, अर्थ त्रिहं गाथा नों सार ।। *लय : इण पुर कंबल कोइय न लेसी
३९६ भगवती-जोड़
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