Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 395
________________ थकी उत्तर नंदा पुष्करणीआदिक उत्तर द्वारांत । तिबार पर्छ द्वितीय वार नीकलतो छतो पूर्व द्वारादिक पूर्व नंदा-पुष्करणी पर्यवसान अर्चनिका नी वक्तव्यता तिकाहीज वक्तव्यता सुधर्मा सभा नै विषे, पिण ऊणी अधिकी न कहिवी । तिवार पछ पूर्व नंदा पुष्करणी नी अर्चनिका करीनै उपपात सभा में विषे पूर्व द्वार करिक प्रवेश कर । प्रवेश करीनै मणिपीठिका अनैं देव-सेज्या नीं तदनंतर बहु मध्य देश भागे पूर्ववत अर्चनिका करै। तिवार पछ दक्षिण द्वारे आवी नै तेहनी अर्चनिका करै । तिवार पछ कहै छ ___ अठा थी आग इहां पिण सिद्धायतनवत दक्षिण द्वारादिक पूर्व नंदा पुष्करणी पर्यवसान अर्चनिका कहिवी। तिवार पर्छ पूर्व नंदा पुष्करणी थकी नीकली नै द्रह नै विषे आवी ने पूर्ववत तोरणादिक नी अर्चनिका कर, करीने पूर्व द्वारे करि अभिषेक सभा नै विषे प्रवेश कर। प्रवेश करीने मणिपीठिका अनै सिंहासन नी वली अभिषेक भांड नी अनैं बहु मध्य देश भाग नी पूर्ववत अर्चनिका अनुक्रम करिक कर। तिवारै पर्छ इहां पिण सिद्धायतनवत दक्षिण द्वारादिक पूर्व नंदा पुष्करणी पर्यवसान अर्चनिका कहिवी । तिवार पछै पूर्व नंदा पुष्करणी थकी पूर्व द्वार करीनै अलंकारिक सभा प्रति प्रवेश करीने मणिपीठिका अन सिंहासन नीं वली अलंकारिक भांड नीं अन बहु मध्य देश भाग नी अनुक्रम करिके पूर्ववत् अर्चनिका करै । तिवार पछ इहां पिण अनुक्रम करी सिद्धायतनवत दक्षिण द्वारादिक पूर्व नंदा पुष्करणी पर्यवसान अर्चनिका कहिवी।। तिवार पछ पूर्व नंदा पुष्करणी थकी पूर्व द्वार करी व्यवसाय सभा प्रति प्रवेश करै । प्रवेश करीने पुस्तक रत्न प्रत लोमहस्त करिके पूंजीनै उदक धारा करिके सींची ने चंदने करी चर्ची ने वर गंध माल्य करी अर्ची नै पुष्पादिआरोपण अनें धूप-दान करें। तदनंतर मणिपीठिका नी अने सिंहासन नी अने बहु मध्य देश भाग नी अनुक्रम करिक अर्चनिका करै। तदनंतर तिहां पिण सिद्धायतनवत दक्षिण द्वारादिक पूर्व नंदा पुष्करणी पर्यवसान अर्चनिका कह्विी। तिवार पछी पूर्व नंदा पुष्करणी थकी वलिपीठ विषे आवी ने बहु मध्य देशभागवत अर्चनिका करै, करीने आभियोगिक देवता प्रति बोलावी ने कहै-- खिप्पामेव इत्यादिक सुगम । जिहां लगे आभियोगिक देवता शक सुरेंद्र कह्यो तिम सुधर्मावतंसक विमान के विषे सर्व स्थानक पूजी ने आज्ञा पाछी सूपं । णवरं इहां शृंघाटकादिक शब्द नो वृत्तिकार जूओ-जूओ अर्थ कियो छ। तिवार पछ शक्र बलि-पीठे वलि-विसर्जन कर, पूजतां जे वाना ऊगरया, ते वलि-पीठ नै विषे स्थापे। तिवार पछै ईशाण कणे नंदा पुष्करणी प्रति प्रदक्षिणा देइ पूर्व तोरणे करी नंदा पोखरणी में पैसी हाथ पग पखाली नंदा पुष्करणी थी नीकली सामानिकादि परिवार सहित सर्व ऋद्धि करिक यावत दुंदुभि नां निर्घोष नाद शब्दे करी सुधर्मावतंसक विमान नै मध्योमध्य थइ सुधर्मा सभा तिहां आवी ते सभा नै पूर्व द्वारे करी प्रवेश करै । मणिपीठिका नै ऊपर सिंहासन नै विषे पूर्व साम्हो मुख करी बेस । तिवार पछ पूर्वे कह्यो तिण प्रकार करि सिंहासन ने विदिस पूर्वादि दिशे सामानिकादिक बेस । 'ए वृत्ति थी वारता लिखी तिणमें सुधर्मा सभा ने तीन दिशे द्वार मुख मंडपादिक पूज्या कह्या अने घणी परतां में सुधर्मा सभा नै त्रिहुं दिशे द्वार मुख मंडपादिक पूजवा नो पाठ नथी कह्यो । ते ए वाचना भेद दीस छ । वलि सुधर्मा सभा थी उपपात सभा नै विषे आवी मणिपीठिका, देवसेज्या, बहु मध्य देश भाग नीं पूजा वृत्ति में तो कही अनै घणी परतां में ए पाठ दीसतो नथी। ए पिण ततः सभायाः सुधर्माया बहुमध्यदेशभागेऽनिका पूर्ववत् करोति, कृत्वा सुधर्माया: सभाया दक्षिणद्वारे समागत्य तस्य अर्चनिकां पूर्ववत् कुरुते, ततो दक्षिणद्वारेण विनिर्गच्छति, इत ऊध्वं यथैव सिद्धायतनानिष्क्रामतो दक्षिणद्वारादिका दक्षिणनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना पुनरपि प्रविशत: उत्तरनन्दापुष्करिण्यादिका उत्तरद्वारान्ता ततो द्वितीयद्वारान्निष्कामतः पूर्वद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिकावक्तव्यता सैव सुधर्मायां सभायामप्यन्यूनातिरिक्ता वक्तव्या, ततः पूर्वनन्दापुष्करिण्या अर्चनिकां कृत्वा उपपातसभां पूर्वद्वारेण प्रविशति, प्रविश्य च मणिपीठिकाया देवशयनीयस्य तदनन्तरं बहुमध्यदेशभागे प्राग्वदर्च निकां विदधाति, ततो दक्षिणद्वारे समागत्य तस्यानिकां कुरुते। अत ऊर्ध्वमत्रापि सिद्धायतनवत् दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसानाऽर्चनिका वक्तव्या, ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीतोऽपक्रम्य ह्रदे समागत्य पूर्ववत् तोरणार्च निकां करोति, कृत्वा पूर्वद्वारेणाभिषेकसभा प्रविशति, प्रविश्य मणिपीठिकाया: सिंहासनस्याभिषेकभाण्डस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेण पूर्ववदर्चनिकां करोति, ततोऽत्रापि सिद्धायतनवत् दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिका वक्तव्या तत: पूर्वनन्दापुष्करिणीत: पूर्वद्वारेणालङ्कारिकसभा प्रविशति, प्रविश्य मणिपीठिकाया: सिंहासनस्य अलंकारभाण्डस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेण पूर्ववदनिकां करोति, तत्रापि क्रमेण सिद्धायतनवत् दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अचंनिका वक्तव्या। ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीतः पूर्वद्वारेण व्यवसायसभा प्रविशति, प्रविश्य पुस्तकरत्नं लोमहस्तकेन प्रमृज्य उदकधारया अभ्युक्ष्य चन्दनेन चर्चयित्वा वरगन्धमाल्यैरर्चयित्वा पुष्पाद्यारोपणं धूपदानं च करोति, तदनन्तरं मणिपीठिकाया: सिंहासनस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेण पूर्ववदर्च निकां करोति, तदनन्तरमत्रापि सिद्धायतनवत् दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिका वक्तव्या, ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीतो बलिपीठे समागत्य तस्य बहुमध्यदेशभागवत् अर्चनिकां करोति, कृत्वा च आभियोगिकदेवान् शब्दापयति, शब्दापयित्वा एवमवादीत् 'खिप्पामेव' इत्यादि सुगमं यावत् 'तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति'। ततः शक्रेन्द्रः बलिपीठे बलिविसर्जनं करोति, कृत्वा चोत्तरपूर्वी नन्दापुष्करिणीमनुप्रदक्षिणीकुर्वन् पूर्वतोरणेनानुप्रविशति, अनुप्रविश्य च हस्तौ पादो प्रक्षालयति श० १०, उ०६, ढा०२२४ ३७६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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