Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 403
________________ २२. 'साइरेगं जोयणसहस्स' ति तथाविधसमुद्रगोतीर्थकादा विदमुच्चत्वमुत्पलस्यावसेयम् । (वृ०५० ५१२) सोरठा २२. तथाविध सुविचार, दधि' गोतीर्थादिक विषे। उच्चपणे अवधार, साधिक योजन सहस्र जे॥ बंध द्वार (५) २३. ज्ञानावरणी कर्म नां भदंत ! बंधगा कै अबंधगा हुंत ? जिन कहै अबंधगा नांय, बंधगे वा बंधगा वा थाय ॥ २३. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा? अबंधगा? गोयमा! नो अबंधगा, बंधए वा, बंधगा वा। (श० १११६) सोरठा २४. एक पत्र अवस्थाय, बंधग इक वचने कह्यो। __ द्वयादिक पत्रे पाय, बहु वचने छै बंधगा॥ २५ एवं जाव अंतराय संग, णवरं आयु कर्म अठ भंग । __ इकसंयोगिक भंग च्यार, द्विकयोगिक चिहुं धार । २४. एकपत्रावस्थायां बन्धक एकत्वात् द्वयादिपत्रावस्थायां च बन्धका बहुत्वादिति। (वृ०प० ५१२) २५. एवं जाव अंतराइयस्स, नवरं--आउयस्स-पुच्छा। 'नवर' मित्यादि, इह बन्धकाबन्धकपदयोरेकत्वयोगे एक वचनेन द्वौ विकल्पो बहुवचनेन च द्वो द्विकयोगे तु यथायोगमेकत्वबहुत्वाभ्यां चत्वारः इत्येवमष्टी विकल्पाः । (वृ०प० ५१२) २६. बंधए वा, २७. अबंधए वा, इकसंयोगिक भांगा च्यार २६. एक पत्र अवस्थाए न्हाल, आखखो बांधै तिण काल । बंधए इक वचने कहिये, ए प्रथम भंग इम लहिये ।। २७. इक पत्र तणे अवस्थाय, आयु बंध काल विण ताय । अबंधए इक वचनेह, भंग दूजो कह्यो छै एह ॥ २८. दोय आदि पत्र अवस्थाय, आउखा नें बंध-काल ताय । बंधगा बहु वचने कहाय, ए तीजो भांगो इण न्याय ।। २६. दोय आदि पत्र अवस्थाय, आयु बंध-काल विण ताय । __ अबंधगा बहु वचनेह, भंग चउथो कह्यो छ एह ।। २८. बंधगा वा, २६. अबंधगा वा द्विकसंयोगिक भांगा च्यार ३०. बंधक इक वचनेह, अबंधक इक वच तेह । बंधक इक वच जेह, अबंधगा बहु वचनेह ।। ३१. बंधगा बहु वच जेह, अबंधग इक वच एह। बंधगा बहु वचनेह, अबंधगा बहु वच तेह ।। ३०. अहवा घंधए य अबंधए य अहवा बंधए य अबंधगा य। ३१. अहवा बंधगा य अबंधए य अहवा बंधगा य अबंधगा (श० १११७) वेद द्वार (३) ३२. हे भगवंत ! ते जीवा, ज्ञानावरणी कर्म नां अतीवा। वेदक ते वेदन्त, अथवा अवेदक हंत? __ वा०-वेदवो ते अनुक्रम उदै आया नै तथा उदीरणा करिक उदय आण्या कर्म नो अनुभव-भोगविवू । ३३. जिन कहै अवेदका नांय, वेदक प्रथम पत्र अपेक्षाय । तथा वेदगा बह वचनेह, दोय आदि पत्र आधी एह ॥ ३२. ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कि वेदगा? अवेदगा? वा०-वेदनं अनुक्रमोदितस्योदीरणोदीरितस्य वा कर्मणोऽनुभवः । (वृ०प० ५१२) ३३. गोयमा ! नो अवेदगा, वेदए वा, वेदगा वा । अत्रापि एक पत्रतायामेकवचनान्तता अन्यत्र तु बहुवचनान्तता। (वृ० ५० ५१२) १. समुद्र । *विना रा भाव सुण-सुण गूंज .११. उ. १, ढाल १२५ १७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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