Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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३४. एवं जाव अंतराइयस्स ।
(श० ११३८) ते णं भंते ! जीवा कि सायावेदगा? असायावेदगा ३५. गोयमा ! सायावेदए वा असायावेदगा वा-अटू भंगा।
(श० ११६)
३६. तेणं भते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कि
उदई ? अणुदई ? गोयमा ! नो अणुदई । वा०-उदयश्चानुक्रमोदितस्यैवेति वेदकत्वप्ररूपणेऽपि भेदेनोदयित्वप्ररूपणमिति।
(वृ०प० ५१२) ३७. उदई वा, उदइणो वा । एवं जाव अतराइयस्स ।
(श० ११।१०)
३८. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मरस कि
उदीरगा? अणुदीरगा? | ३६. गोयमा ! नो अणुदीरगा, उदीरए वा, उदीरगा वा ।
४०. एवं जाव अंतराइयस्स, नवरं-वेदणिज्जाउएस अट्ट भंगा।
(श० ११।११) ४१. वदनीये-सातासातापेक्षया आयुषि पुनरुदीरकत्वानु
दीरकत्वापेक्षयाष्टौ भंगाः। (वृ०५० ५१२)
३४. एवं जाव कर्म अंतराय, वलि गोतम पूछ वाय । . सातावेदगा ते प्रभ ! जीवा, के असातावेदगा कहीवा? ३५. जिन कहै साता ने असात, वेदग वेदगा नो अवदात । आठ भांगा पूर्ववत जाणी, साता असाता नां सुपिछाणी ।।
उदय द्वार (७) ३६. हे भगवंत ! ते जीवा, ज्ञानावरणी कर्म नां सदीवा।
उदयवंत के अणउदयवंत ? जिन कहै अणउदय न हंत ।। वा०-उदय ते अनुक्रम उदय आया नौं ईज । इण हेतु थकी वेदकपणां नी परूपणा कीधे छते पिण भेद करिके उदयपणां नो परूपवो। ३७. उदई इक वच धुर पत्र एह, तथा उदइणो बहु वच जेह । दोय आदि पत्र अपेक्षाय, एवं जाव कर्म अंतराय ।।
उदीरणा द्वार (८) ३८. हे भगवंत ! ते जीवा, ज्ञानावरणी नां अतीवा।
उदीरणावंत कहाय, कै उदीरणावंत छै नाय ? ३६. जिन कहै अनुदीरक नांय, एतले ते उदीरक थाय ।
उदीरक इक वच धुर पत्र, बह वच उदीरगा बहु पत्र ।। ४०. एवं जाव अंतराय पेख, णवरं एतलो छै विशेख ।
वेदनी आयु विषे विख्यात, आठ भांगा पूर्ववत थात ॥ ४१. वेदनी कर्म साता असात, तेह अपेक्षाय अवदात । आयु विषे वलि कहिवाय, उदीरक अनुदीरक पेक्षाय ॥
इकसंजोगिया ४ भांगा १. साता उदीरए
३. साताउदीरगा २. असाता उदीरए
४. असाता उदीरगा हिवै द्विकसंजोगिक ४ भांगा ५. साता उदीरए असाता उदीरए ७. साता उदीरगा असाता उदीरए ६. साता उदीरए असाता उदीरगा .. ८. साता उदीरगा असाता उदीरगा एतले सर्व मिली ८ भांगा वेदनी कर्म नां हुआ।
हिव आउखा आश्री कहै छइकसंजोगिया ४ भांगा १. आउ उदीरए वा
३. आउ उदीरगा वा २. आउ अणुदीरए वा
४. आउ अणुदीरगा वा द्विकसंजोगिक ४ भांगा ५. आउ उदीरए आउ अणुदीरए ७. आउ उदीरगा आउ अणुदीरए ६. आउ उदीरए आउ अणुदीरगा ८. आउ उदीरगा आउ अणुदीरगा ए ४ भांगा एक वचन, ए ४ भांगा बहु वचन, एवं ८ ।
वा०-ए आउखा नों अनुदीरकपणो किम हुवं? आउखा ने उदीरणा करिकै उदीरवो कदाचितपणां थकी।
लेश्या द्वार (8) ४२. उत्पल जीवा भदन्त ! स्यूं कहियै कृष्ण लेश्यावंत ।
अथवा नील तथा कापोत, तथा तेजु लेश्यावंत होत ?
वाo---अनुदीरकत्वं चायुष उदीरणाया: कादाचित त्यादिति
(वृ० ५० ५१२)
४२. ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेसा? नीललेगा?
काउलेसा ? तेउलेसा ?
३२८ भगवती-जोड़ .
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