Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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चैत्य-वृक्ष, महेंद्र-ध्वज, नंदा पुष्करणी ने पूजे, तिवार पछे सुधर्मा सभा ने विषे पूर्व द्वार करिकै प्रवेश करें । ए रायपश्रेणी नीं वृत्ति में का तिमलिख्युं ।
* शक्र सुरेन्द्र सधीको ओ तो करें द्रव्य मंगलीको जी, कारज छै ए लोकीको जी । ओ तो सुरनायक जश टीको जी, शक्र सुरेन्द्र सधीको जी || ( ध्रुपदं ) २३७ जिहां सभा सुधर्मा ताह्यो, तिहां आवै शक्र सुररायोजी । सुधर्मा सभा नें विशेषे पूर्व द्वारे करि पेसे जी ॥
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चैत्य भ अभिरामो गोल वृत्त डाबडा ताह्यो । पिच्छ पूंजणी ग्रहीन । गोल वृत्त डाबा वज्र मांह्यो, पूंजणीइं पूंज ताह्यो । २४०. गोल वृत्त डावा व मांह्यो, सुरराव उपाई जिन नी दादा प्रति तेहो, पूजणी करी
ताह्यो ।
पूजेहो ।
२३. जिहां माणवक इह नामो
जिहां वज्र रत्न रै मांह्यो, २३६. तिहां आवै आवी नैं, मयूर
२४१. पूंजी में वलि हि काले, सुगंध जल करीनें पखाले । मुख्य प्रवर गंध माल्य कर, दादा प्रति पूजे सुरवर ।।
२४२. धूप खेवी दाढा नैं ताह्यो, घालै ते खंभ चैत्य माणवक जासो, पूंजणीइं
डाबा मांह्यो । पूंजे तासो ॥
२४३. दिव्य जल धारा करि जेहो, आभोर्स सींच तेहो आले गोशीपं चंदण कर चर्चे छोटा दे सुखर ।। २४४, पुष्पादि चढाव इंदो जावत दं धूप सुरिदो फुन जिहां सिंहासण जाणी, पूजा तिमहिज पहिछाणी ॥ २४५. सुर सेज्या आवी सुरवर, पूजा वे द्वार तणी पर जिहां क्षुल्लक महिंद्र ध्वज आयो, ध्वज ज्यू पूजे सुररायो ।
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२४६. जिहां प्रहरण कोश चोप्फालं, लोमहस्त पुंजणी ग्रही ने, २४७. दिव्य जल धारा करि जोड,
तिहां आवं आयुधशालं । आयुधशाला पूंजी ने ॥ आभो सींचे सोइ। गोशीर्ष सरस चंदन कर दिये छांटणा सुरवर ।। २४८. पुष्पादि चढावे सारो, जावत दे धूप उदारो । जिहां सभा सुधर्मा केरो, बहु मध्य देश भाग सुमेरो ॥ २४१. जिहां मणिपीठिका आधी, जिहां सुर संख्या अति जाची। तिहां आय पूंजणी ग्रही नें, ते उभय प्रतं पूंजी नैं ॥ *लय : चरित्र निर्मल पालीजे जी
१. गाथा २४६ की जोड़ जिस पाठ के आधार पर की गई है वह पाठ ( वृ० प० २६५) में मिलता है किन्तु यहां जीवाभिगम (प्रतिपत्ति ३) के विवरणानुसार पाठ स्वीकृत किया है। इसलिए 'मणिपेढ़िया' और 'देवसयणिज्ज' की जोड़ के सामने कोई पाठ उद्धृत नहीं किया गया है ।
२३७. जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ । (राय० सू० १५१ ) २३८. जेणेव माणवए चेइयखंभे जेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गा । ( राय० सू० ३५१ ) २३९. तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ । (राय० सू ३५१) २४०. वइराम गोलबसाए लोमहत्येनं मन्द ममता व रामए गोवाए बिहा विहाता जिसकायो लोमहत्ये पमम्न | (राय० सू० ३५१) २४१. पति सुरभिगा गंधोदणं पक्खालेद, पतालेत्ता अग्गेहि वरेहिं गधेहिं य मल्लेहिं य अच्चेइ । (राय० सू० ३५१ ) दलपित्ता जिसका
२४२. अच्चेत्ता धूवं दलयइ, बदरामएस गोलबसम्म खंभं लोमहत्यएणं पमज्जइ । २४३. दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, गोसीमचंदणेणं चच्चए दलयइ । २४४. पुप्फारुणं जाव धूवं दलयइ । ...... जेणेव सीहासणे..." २४५. जेणेव देवसयणिज्जे .... ।
मागद दव(राय० सू० ३५१) अब्भुक्खेत्ता सरसेणं (राय० सू० ३५१ ) (राय० सू० ३५१ ) ( राय० सू० ३५२ )
जेणेव खुड्डागम हिंदज्झए ''तं चैव ।
(राम० सू० १५३,३५४ ) २४६. जेणेव पहरणकोसे चोप्पालए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता' ( राय० सू० ३५५ ) २४७. दिव्या दगधाराए अनखेड, अब्भुवसेत्ता सर गोसीसचंद चच्चएप ( राय० सू० ३५५ ) २४. पुजा (सं० पा०) धूर्व दलपद ।
(राय० सू० ३५५) जेणेव सभाए सुम्याए बहुमजादेभाए।
(राम० सू० ३५६ )
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श० १०, उ० ६ ढाल २२४ ३६५
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