Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 12
________________ है उसको दशा जीणं शौर्ण होने से वह उपेक्षित बनी रही पोर उसके एक एक पाठ नहीं देने आ सके । करीब ६-७ महिने पूर्व वह पोयी पुनः देखने में पायी और जब उसका एक २ पृष्ठ देखते २ प्रागे बढ़ने लगा तो एक पत्र पर बाईपजीतमति का नाम पढ़ने में माया । एक महिला कवि बाई अजीतमति का नाम पढ़कर उसकी कृति को पूरा पढ़ने की ओर भी उत्सुकता पड़ी तपा धीरे २ पूरी पोपी के एक २ पृष्ठ को ध्यान से देखने पर अजीतमति की प्रच्छी सामयी हाय लग गयी। साथ में उसके स्वयं के द्वारा लिखा हुपा वह पत्र जिसमें संवत् १६५० अंकित है। इतनी प्राचीन कवायत्री की उपलब्धि अत्यधिक प्रसन्नता की बात है। अजीतमति मीराबाई की समकालीन थी । मीरा का जन्म सं० १५५५-१५७३ के मध्य माना जाता है तथा उसकी मृत्यु १६०३-१६०४ के मध्य मानी जाती है इसी तरह बाई मजीतमति का जन्म हमने सन् १५५० के प्रासपास एवं मृत्यु सन् १६१० के पाम पास मानी है। जैसे मीरा ने भक्ति परक पद लिखे उसी प्रकार अजीतमति में भी माध्यात्मिक पद लिखे हैं। यही नहीं संवत् १६५० (सन् १५६३) में प्रयुक्त हिन्दी गद्य के प्रयोग का भी एक गद्यांश मिला है भाषा साहित्य की दृष्टि में प्रत्याधिक महत्वपूर्ण है। प्रस्तुत पुष्प के दूसरे कवि परिमल चौधरी है जिनके बारे में ग. प्रेम सागर, म० नेमिचन्द शास्त्री एवं पं० परमानन्द शास्त्री ने संक्षिप्त प्रकाश सला है। कवि की एक मात्र रचना श्रीपाल चरित्र ४०-४५ वर्ष पहिले प्रकाशित हुई थी जो अनुपलब्ध मानी जाती है। परिमल्ल' कषि उच्च स्तरीय कवि थे। उनके कवि श्रीपाल चरित्र में श्रीपाल की घटनामों का बहुत विशद रूप से वर्णन मिलता है। कवि की भाषा में लालित्य एवं शब्दों में मधुरता है । कवि ने श्रीपाल के चरित्र का इतना सुन्दर एवं प्राकर्षक वर्णन किया है कि पूरा काब्य रोचक बन हो गया है। उसके वर्णनों में सजीवता एवं हृदय पुलकित करने को भरपूर क्षमता है। इसलिये कोई भी पाठक श्रीपाल चरित्र को एक बार प्रारम्भ करने के बाद उसे पूरा करने के बाद ही छोड़ता है। प्रस्तुत भाग में काव्य का प्रारम्भिक एवं मन्तिम अंस दिया गया है वह काव्य का प्रमुख प्रण है । __ तीसरे कवि घनपाल है। जिनकी चर्चा भी साहित्यिक जगत् के समक्ष प्रथम वार की जा रही है। धनपाल देल्ह कवि के द्वितीय पुष थे । पिता का कवि होना और उसके दोनों पुत्रों का भी कवि होना प्रत्यधिक उल्लेखनीय है संयोग है । घनपाल को अभी तक हम कोई बड़ी कृति नहीं खोज सके हैं लेकिन उनके जो बार पद मिले हैं वे बारों हो इतिहास परक है। केशोरायपाटन, प्रामेर, सांगानेर एवं टोडारायसिंह के मुनिसुरतनाय, नेमिनाय, महावीर एवं प्रादिनाथ स्वामी की

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