Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 11
________________ लेखक की ओर से देश में हिन्दी भाषा का विशाल साहित्य विद्यमान है। विगत सात शता. ब्दियों से कवियों एवं लेखकों ने हिन्दी साहित्य के भण्डार को इतना अधिक आप्लाविन किया है कि उसकी थाह पाना किसी नये द्वीप की खोज करने के समान हैं। हम किसी भी गाय/शहर में स्थित शास्त्र भण्डारों प्रश्वा व्यक्तिगत संग्रहों की खोज में निकल जावे तो कभी २ कुछ ऐमी कृतियां उपलब्ध हो जाती है जिनके बारे में हमने अब तक सुना भी नहीं होगा ! इसलिये हिन्दी साहित्य के विशाल भण्डार को इतिहास के रूप में बांधना किसी एक विद्वान के लिये संभव नहीं है । पब तक हिन्दी साहित्य के जो इतिहास निकले है वे सब किसी न किसी प्रकार अपूर्ण है क्योंकि उनमें ममग्र हिन्दी साहित्य का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया है। उदाहरण के लिये हम जैन कवियों द्वारा स्थित हिन्दी साहित्य को ही लें। इस साहित्य को किसी भी विद्वान ने चित स्थान प्रदान नहीं किया । अब तो प्राचीन कवियों को इतिहास में स्थान मिलना ही बन्द सा हो गया है। जैन कवियों एवं उनकी काब्य कृतियों के बारे में अभी तक जो कुछ भी सामग्री सामने आई है उसे केवल सेम्पिस सर्वे (Sample Survey) कह सकते है। यही कारण है कि जैसे-जैसे अकादमी के प्रकाशनों की संख्या बढ़ रही है वैसे ही मशाप्त एवं प्रचित कवियों की संख्या में प्राशानीत वृद्धि हो रही है । भच तक हम ऐसे ३० हिन्दी जैन कवियों को प्रकाश में लाने में सफलता प्राप्त कर चुके हैं जिनके बारे में हम अब तक पूर्णतः मन्धकार में थे । प्रस्तुन सप्तम पुष्प में चार कघि पूर्णतः भशात एवं प्रचित है तथा एक कवि अल्प चश्चित है। में इन पांच कवियों में एक कवयित्री प्रत्रीतमति है जो १७ वी शताबि में अपनी कविताओं से योसानों को प्रानन्दित किया करती थी । मजीतमति प्रथम जन कवयित्री के रूप में हिन्दी जगत् के सामने मामी है। इसकी उपलब्धि की कहानी भी अत्यधिक सेवक है । मिस पोथो में कर्वायत्री की कृतियों का संकलन

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