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बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि
के पीछे माथुर गच्छ की स्थापना। संवत् १८०० के पश्चात् लोग विपरीत क्रिया करने लगेंगे ऐसा भी लिखा है . .. .
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उक्त लेख स्वयं अजीतमति द्वारा सवत् १६५० में लिपिबद्ध किया गया था।
इस तरह साध्वी अजीतमती ने पद्यपि लघु रचनाएं निबद्ध की है लेकिन के उसकी काव्य शक्ति की परिचायक है । ये सभी रचनाएं एक ही गुटके में लिपि बद्ध हैं जो स्वयं अजीतमति का था । हो सकता है अभी राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में कवयित्री की और भी रचनायें संग्रहीत हों। एक महिला कवि द्वारा इतनी सारी काव्य रचना करना प्रशंसनीय है।
कृतियों की भाषा गुजराती प्रभावित है। मलकार शैली एवं भावों की दृष्टि से सभी रचनायें सामान्य है।