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है तथा साहित्य प्रकाशन में बहुत रुचि लेते हैं। अकादमी को प्रापका पूर्ण सहयोग प्राप्त है।
प्रस्तुत भाग के उपयोग के लिये श्रीपाल चरित्र को पाण्डुलिपि के लिये श्री पं. अनूपचन्द जी न्यायतीर्थ एवं श्री राजमलजी संधी, अजीतमति की पाण्डुलिपि के लिये कलाशचन्द जी सोगानी, धनपाल एवं महेन्द्र फीति की पाण्डुलिपियों के लिये श्री माणक बन्द जी सेठी डिग्गी एवं यशोधर रास की पाण्डुलिपि के लिये श्री लक्ष्मीचन्दजी गांधी, प्रतापगढ़ का प्राभारी हूं जिन्होंने उदारता पूर्वक पाण्डुलिपियां देकर इस भाग के प्रकाशन में योगदान एवं सहयोग प्रदान किया है।
80 5 राम कासगोताल
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