Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 8
________________ प्रस्तावना प्रसन्नता व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है क्योंकि यह किसी विज्ञान की सुविधाओं में नहीं वरन् व्यक्ति की सोच में नीहित रहा करती है। अगर व्यक्ति यह फैसला कर ले कि वह हर हाल में प्रसन्न रहेगा फिर चाहे चित्त गिरे या पुट मेरी समझ से फिर दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है जो उसे नाखुश कर सके।ख़ुशी भी हमारी उपज है और नाखुशी भी क्योंकि जिस बीज से फूल पैदा होते हैं उसी बीज से काँटे भी। काँटों को देखने की बजाय फूलों को निहारने की दृष्टि उपलब्ध हो जाए तो इंसान भी फूल जैसा फरिस्ता बन सकता है। . प्रस्तुत पुस्तक 'बेहतर जीने की कला' इसी चिंतन का परिणाम है । आदरणीय प्रवर्तिनी श्री चन्द्रप्रभा श्री जी म. ने अपनी अंतर्दृष्टि से कुछ मंत्र उद्घाटित किये हैं जिसे मनन करके मनुष्य मन के साथ जोड़ ले तो उसका जीवन महक सकता है। पूज्या साध्वीवर्या ने जो कुछ प्रकृति-जगत, धर्म-जगत, जीवन-जगत और अध्यात्म-जगत में देखा, समझा और अनुभूत किया, उन्हीं प्रेरणाओं को सूर्य की किरणों की तरह हमारे सामने बिखेरा है। ____जीवन की सफलता के लिए व्यवहार और व्यवसाय दोनों ही ऐसे हो जिनसे किसी का अहित न हो क्योंकि यही जीवन विकास का मूलमंत्र है। प्रस्तुत पुस्तक में : वाणी से व्यवहार तक, सोच से स्वभाव तक, सफलता से सकारात्मकता तक, धर्म से अध्यात्म तक और परिवार से लेकर देश तक हर क्षेत्रको शामिल किया गया है ताकि इंसान को गागर में सागर का लाभ प्राप्त हो सके। जो भी व्यक्ति अपने जीवन का प्रबंधन बेहतर तरीके से करना चाहता है। अपने घर, परिवार और सम्बन्धों में मिश्री का मिठास घोलना चाहता है और आसमान के स्वर्ग को अपने आस-पास घटित होता हुआ देखना चाहता है उनके लिए यह पुस्तक सूर्य की रोशनी व चंद्रमा की शीतलता की तरह आनंदित करने वाली साबित होंगी। - मुनि शांतिप्रिय सागर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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