Book Title: Bahetar Jine ki Kala Author(s): Chandraprabhashreeji Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta View full book textPage 6
________________ जन्म अध्ययन विचक्षण ज्योति, प्रज्ञा भारती, महामांगलिक प्रदात्री परम पूज्य गुरुवर्याश्री प्रवर्तिनी श्री चन्द्रप्रभा श्री जी म. की जीवन झलक वि.सं. 1995 माघवदी तेरस, बीकानेर (राजस्थान) पिता का नाम- श्री बालचन्द जी नाहटा माता श्रीमती धापूबाई (दीक्षा नाम श्री वर्द्धमान श्री जी म.सा.) भ्राता श्री मनोहरलाल नाहटा दीक्षा पूर्व नाम - कुमारी मोहिनी दीक्षा - वि.सं. 2009 फाल्गुन शुक्ला द्वादशी, खुजनेर (म.प्र.) (14 वर्ष की उम्र) दीक्षा दाता- प.पू. वीरपुत्र श्री जिन आनंदसागर सूरीश्वरजी म.सा. दीक्षा गुरु- प.पू. जैन कोकिला प्रवर्तिनी महोदया श्री विचक्षण श्री जी म.सा. दीक्षा नाम- प. पू. श्री चन्द्रप्रभा श्री जी म.सा. हिन्दी, संस्कृत, गुजराती आदि भाषाओं का, जैन आगम साहित्य -इतिहास, कर्मवाद आदि का एवं जैन -जैनेतर ग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन। विचरण क्षेत्र - राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कच्छ,छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश,कर्नाटक, तमिलनाडू, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, बिहार आदि अनेक राज्य। कार्यक्षेत्र - स्वप्रेरित जिनमंदिर व दादावाड़ी प्रतिष्ठित वि.सं. 2037 वैशाख शुक्ला 10 नागेश्वर तीर्थ पर श्री जिनकुशल दादावाड़ी प्रतिष्ठा समारोह (विशेष - भारत भर में काउस्सग मुद्रा में प्रथम प्रतिमा ,खरतरगच्छ के समस्त पू. गुरु भगवंतों का सान्निध्य) वि.स. 2063 - कोलकाता महावीर स्वामी मन्दिर के अन्तर्गत दादागुरुदेव की प्रतिष्ठा एवं दादावाड़ी परिसर में उपाश्रय का नवनिर्माण। वि.सं. 2064- चिंतामणी विंग मन्दिर (शिखरजी तीर्थ) का संपूर्ण जीर्णोद्धार व प्रतिष्ठा। वि.सं. 2043 - पीपाड़ सिटी में जीर्णोद्धार सह दादावाड़ी की पुनः प्रतिष्ठा। वि.सं. 2045 - सूरत शहर (मगदला) तीर्थ में दादागुरु प्रतिमा प्रतिष्ठा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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