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ही। और यदि मानों कि दोनों को समान वातावरण मिले, दोनों को विकास के समान अवसर मिलें तो भी दोनों का व्यक्तित्व अलग - अलग ही होगा, मात्र शक्ल - सूरत एक जैसी होगी।
आज भी हम देखते हैं कि दो जुड़वें भाई शक्ल - सूरत में एक से होते हैं, दोनों में अन्तर कर पाना मुश्किल हो जाता है, फिर भी उनमें से एक अधिक पढ़-लिख जाता है तथा दूसरा कम पढ़ा-लिखा होता है। एक सर्विस करने लगता है तथा दूसरा निजी व्यवसाय। आगे चलकर उनकी जिम्मेदारियाँ भी अलग - अलग हो जाती हैं जिससे उनके व्यवहार में भी काफी अन्तर आ जाता है। इस प्रकार दो एक सी शक्ल वाले भाइयों का व्यक्तित्व भी अलग-अलग बन जाता है। इसी तरह दो एक जैसे क्लोन तथा डोनर - पेरेन्ट के बीच भी अन्तर रहेगा।
दूसरा प्रश्न क्लोन के जन्म को लेकर है। यह सही है कि बिना नर के सहयोग के भी जीव पैदा किया जा सकता है। मात्र मादा द्वारा भी जीव पैदा हो सकता है, लेकिन उस स्थिति में पैदा हुआ क्लोन (जीव) मादा ही होगा, नर नहीं। इस प्रकार जो भी डोनर - पेरेन्ट होगा वही क्लोन भी होगा। यदि डोनर - पेरेन्ट नर है तो क्लोन भी नर होगा और यदि डोनर - पेरेन्ट मादा है तो क्लोन भी मादा ही होगा। स्तनधारियों के क्लोन बनाने की प्रक्रिया में यह बात ध्यान देने योग्य है कि क्लोन के भ्रूण को मादा के गर्भाशय में रखा जाता है। तत्पश्चात गर्भाशय के अन्दर ही बच्चे का विकास होता है तथा गर्भकाल पूरा होने के बाद ही क्लोन बच्चा पैदा होता है। यहाँ गर्भ की प्रक्रिया को छोड़ा नहीं गया है। अत: जैन धर्म में जन्म के आधार पर गर्भज आदि जो भेद किये गये हैं वहाँ कोई विसंगति नहीं आती है।
. जहाँ तक स्तनधारी जीवों में बिना नर के क्लोन तैयार होने का प्रश्न है, यहाँ एक बात यह अवश्य ध्यान रखनी चाहिये कि मादा के अण्डाणु मात्र से ही जीव - क्लोन पैदा नहीं होता है, बल्कि उस अण्डाणु के केन्द्रक को दूसरी (किसी अन्य) कोशिका के केन्द्रक द्वारा विस्थापित कराया जाता है तभी भ्रूण पैदा होता है। अत: भ्रूण बनाने के लिये दो कोशिकाओं का होना आवश्यक है जिनमें से एक मादा का अण्डाणु तथा दूसरी कोई अन्य कोशिका होना चाहिये। इस प्रकार दो अलग-अलग कोशिकाओं के सहयोग से ही क्लोन बनना सम्भव हो सका है।
अत: हमें गर्भ जन्म की प्रक्रिया की जैन मान्यता में इतना जोड़ लेना होगा कि गर्भ जन्म वाले जीव मादा के गर्भ से ही पैदा होंगे लेकिन वे बिना नर के सहयोग के भी पैदा हो सकते हैं। इस स्थिति में वे मादा ही होंगे लेकिन उनके पैदा होने में भी दो अलग-अलग कोशिकाओं - एक अण्डाणु तथा दूसरी अन्य का होना आवश्यक है।
यहाँ से यह भी स्पष्ट हो जाना चाहिये कि भेड़ के क्लोन डॉली का जन्म भी इसी प्रक्रिया से हआ था। अत: उसका जन्म भी गर्भ-जन्म ही था। कुछ लोग डॉली को सम्मूर्च्छन जीवों की श्रेणी में रखते हैं, लेकिन वह बिल्कुल गलत है। डॉली भी अब माँ बन चुकी है, वह भी आम भेड़ों की तरह। इस घटना ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि डॉली सम्मूर्च्छन जीव नहीं है। यदि डॉली को सम्मूर्छन माना गया तो यह एक प्रश्न और पैदा हो जायेगा कि क्या सम्मूर्च्छन जीवों से भी गर्भ जन्म होना सम्भव है?
___ यह मानना सही नहीं है कि मनुष्य को प्रयोगशाला में भी पैदा किया जा सकता
अर्हत् वचन, जुलाई 99