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अंजन चोर को आकाशगामिनी विद्या सेठ के मंत्र से प्राप्त होने तथा उसके व सेठ के द्वारा सुमेरू पर्वत के जिनालयों की वन्दना की कथा प्रथमानुयोग में है। विद्याधर और ऋद्धि प्राप्त मुनि भी सुमेरू चैत्यालयों की वन्दना करते हैं। चैत्यालयों की स्थिति सोमनस वन में 63000 योजन और पांडुकवन की 99000 योजन है। जब मनुष्य वहाँ जा सकता है तो 880 योजन चन्द्रलोक तक जाना आगम सम्मत क्यों नहीं है ? यह बात दूसरी है कि लोग वहाँ तक गये या नहीं ।
सूर्य, चन्द्रमा आदि की संख्या
विज्ञान के अनुसार आकाश में हमारे सूर्य जैसे लाखों और भी सूर्य हैं। लेकिन वे हमसे बहुत दूर होने के कारण इतने बड़े और चमकदार नहीं दिखाई पड़ते। यह कथन भी जैनागम के विपरीत नहीं है। क्योंकि जैनागम जम्बूद्वीप में 2 सूर्य और 2 चन्द्रमा मानता है । जम्बूद्वीप के समान असंख्यात द्वीप समूह एक दूसरे को घेरे हुए स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त है। उनमें सूर्य और चन्द्रमा की संख्या भी दोगुनी होती जाती है।
भूगोल का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। कुछ बिन्दुओं को ही स्पर्श किया गया है। विद्वतजन लेख में यदि कुछ विसंगति देखें तो कृपया लेखक का ध्यान आकर्षित करने की कृपा करें ताकि त्रुटियों को दूर किया जा सके। यह विनम्र निवेदन है।
सन्दर्भ स्थल :
1. विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान, म.प्र. पाठ्य पुस्तक निगम, भोपाल
2. तन्मध्ये मेरूनाभिवृत्तोयोजन शतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीप:, उमास्वामी, तत्वार्थ सूत्र 3/9
3. तद्विभाजिकः पूर्वापरायताहिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरूक्मिशिखरिणोपर्वत, वही, 3/12
4. ज्ञान भारती, पृ. 19-20
5. विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान, म.प्र. पाठ्य पुस्तक निगम, भोपाल
6. वही
7. द्विर्द्विविष्कम्भा: पूर्व - पूर्व परिसेयिणो बलयाकृतयः, उमास्वामी, तत्वार्थ सूत्र, 3/8
8. नारकानित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रिया:, उमास्वामी, तत्वार्थ सूत्र, 3 / 3
9. छहढाला
10. रत्नाशर्करा बालुका पंकधूमतमोमहातम: प्रभाभूमयोधनाम्बुवताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः, तत्वार्थ सूत्र, 3/1
11. अजीवकायाधर्माधर्माकाशपुद्गलाः, उमास्वामी, तत्वार्थ सूत्र, 5/1, जीवाश्च तत्वार्थ सूत्र, 5/3
12. जैन शास्त्रों में वैज्ञानिक संकेत, पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री, पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ, रींवा, 1989, पृ. 228-232
13. विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान, म.प्र. पाठ्य पुस्तक निगम, भोपाल
प्राप्त
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10.5.98
अर्हत् वचन, जुलाई 99
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