Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 52
________________ आवश्यक है। दस मात्रा का स्वरूप निम्न प्रकार होगा ना ती 1 ओ त S 50 ता 2 पश्चिम अ संगीत विद्वानों एवं गायकों के मतानुसार महामंत्र की राग एवं ताल अनेक प्रकार से दर्शाई जा सकती है। वर्तमान में जो धुन प्रचलित है वह सरल, सुगम एवं प्रभावशाली है। फिर भी कोई व्यक्ति या साधक अपने अन्तरतम की लय में लीन होकर अन्य राग एवं तालछंद में गायें तो मंत्र के प्रभाव में किसी प्रकार की कमी आने की सम्भावना नहीं है । 35 2 धीं 4 प्रकृति के संगीत में दो प्रकार की लय का सर्वाधिक महत्त्व है। समस्त संसार का संचालन दो प्रकार की लयों पर आधारित है एक सीधी एवं द्वितीय आडी अर्थात् दायें-बायें की गति। दोनों लयों के ताल छंद चक्कराकार गति से चलते हैं । ना ऽम ण मो अ 550 महामंत्र के पाँचों पदों में सर्वशक्तिमान शब्द है 'अरिहंत' । इस शब्द का प्रत्येक अक्षर देव स्वरूप है। सच्चिदानन्द स्वरूप यह शब्द निराकार है वहाँ साकार भी है सांगीतिक दृष्टि से इस शब्द पर गहराई से चिन्तन एवं मनन करने पर हमें प्रकृति के लय के साथ स्वरों का बोध होता है। चतुस्त्र जाति की लय अरिहन्त शब्द में निम्न प्रकार स्थित तिस्त्र जाति उत्तर अ अ + हं दक्षिण O उपर्युक्त ताल झपताल के स्थान पर शूल ताल के साथ सही बैठता है । रि त - 6 रि पूर्व 7.20 3 रिहं 8 9 ता णं तिस्त्र जाति की लय को जब उत्तरांग एवं पूर्वांग में मिलाने पर षट्कोण बनेगा। धा = त = 10 S ई यह आकृति शक्ति की प्रतीक है। महामंत्र की पांचवीं पंक्ति तिस्त्र जाति की है। अ = अनाहतवाद, आकाश तत्त्व रि रिषभ स्वर अग्नि तत्त्व हं हंस, आत्मा, वायु तत्त्व 5 जल तत्त्व, गति प्रधान = हं ततरंगें, तन, पृथ्वी तत्त्व विविध तालछंदों को दर्शाने का मूल लक्ष्य यह है कि महामंत्र को किसी भी ताल छंदानुसार गाया जा सकता है पर उनका प्रभाव उक्त छंदानुसार होगा। सामान्यतया चतुस्त्र जाति के तालछंदानुसार गाने से मंत्र की मधुर स्वर लहरी प्राणी मात्र को प्रभावित करती अर्हत् वचन, जुलाई 99 पंचकोण की आकृति में 'अरिहंत' शब्द द्वारा पंचतत्त्वों का बोध होता है। जिनकी गति ताल छंदानुसार दस मात्राओं से संबंधित है। मिश्र जाति ताल छंद णमो सिद्धाणं' है।

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