Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 67
________________ पुस्तक समीक्षा डॉ. नेमीचन्द जैन व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचय डॉ. नेमीचन्द जैन साहित्य (पचास वर्ष : सन् 1948-98) एक अवलोकन, सम्पादक -प्रेमचन्द जैन, हीरा भैया प्रकाशन, 65 पत्रकार कालोनी, कनाडिया रोड़, इन्दौर, प्रथम संस्करण, अक्टूबर 98, मूल्य - रु. 100 = 00 | I.S.B.N. 81-85760 - 55-2. डा. नेमीचन्द जैन : व्यक्तित्व और कृतित्व, संपादक-प्रेमचन्द जैन, हीरा भैया प्रकाशन, 65 पत्रकार कालोनी, कनाड़िया रोड़, इन्दौर, प्रथम संस्करण, मई 99, मूल्य - रु. 100 = 001 I.S.B.N. 81-85760-57-8. समीक्षक - डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर। 3 herches वर्ष 1980 में जब मैंने जैन विद्याओं के अध्ययन के क्षेत्र में कदम रखा था तब ही स्तरीय पत्र - पत्रिकाओं की खोज में तीर्थंकर से साक्षात्कार हुआ। मैं नहीं जानता था कि डॉ. नेमीचन्द जैन कौन हैं? किन्तु तीर्थंकर के अध्ययन से यह तो स्पष्ट हो ही गया था कि इस पत्रिका का सम्पादक बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी एक कुशल भाषाविद् है। तीर्थकर जितनी साहित्यिक है उतनी ही सामाजिक। भाषा की दृष्टि से तो वह इतनी सम्पन्न है कि यदि किसी शब्द का प्रयोग एवं उसका शुद्ध पाठ देखना है तो तीर्थंकर को देखा जा सकता है। वर्षों तक मैं तीर्थंकर का नियमित पाठक रहा एवं आज भी हूँ। किन्तु जैन जैविकी तथा जैन भौतिकी विशेषांक एवं जैन भूगोल अंक आदि पढ़ने के बाद तो मैं चमत्कृत हो उठा। ये अंक भाषाविद् द्वारा सम्पादित होते हुए भी हर पग पर एक कुशल वैज्ञानिक के कृतित्व प्रतीत होते हैं। तीर्थकर के अब तक प्रकाशित 40-50 विशेषांक अपने - अपने विषय के सन्दर्भ ग्रन्थ हैं। ऐसी पत्रिका के सम्पादक डॉ. नेमीचन्द जैन स्वभाव से सरल, विचारों में क्रांतिकारी तथा स्पष्टवादी, धुन के पक्के एवं समर्पित साधक हैं। तीर्थकर उनके जीवन का मिशन है किन्तु विगत लगभग 10 वर्षों से आपने अपने मिशन को एक नया मोड देते हुए शाकाहार के लिये स्वयं को समर्पित किया है। शाकाहार क्रान्ति, शाकाहार के बारे में आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय, प्रमाणिक एवं सर्वाधिक सूचना सम्पन्न पत्रिका है। आरम्भ में द्विमासिक रूप से प्रारम्भ हुई यह पत्रिका सम्प्रति लगभग 10 वर्षों से नियमित प्रकाशित हो रही है। शाकाहार एक समग्र जीवन पद्धति है। जिस पर किये जाने वाला अनवरत चिन्तन डॉ. जैन के इस अवधि में प्रकाशित तीर्थकर की सम्पादकीय टिप्पणियों में भी स्पष्टत: परिलक्षित होता है। 1994 में तीर्थंकर में प्रकाशित अहिंसा के अर्थशास्त्र पर लिखी लेखमालायें इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं। श्रेष्ठ पत्रिकाओं का नियमित प्रकाशन अत्यन्त श्रमसाध्य, कष्टसाध्य एवं पीड़ादायक कार्य है। लेकिन इसके बावजूद भी डॉ. जैन ने लगभग 100 छोटी-बड़ी पुस्तकें जैन समाज एवं हिन्दी साहित्य को प्रदान की। पत्रिकाओं के संपादन की एक लम्बी यात्रा में वीणा, समय तथा अंग्रेजी तीर्थकर भी उनके पड़ाव रहे। देश के विभिन्न अंचलों में विविध साहित्यिक एवं शाकाहार प्रवृत्तियों के लिये अनेकों पुरस्कार से सम्मानित डॉ. नेमीचन्द जैन का जन्म 3 दिसम्बर 1927 को मध्यप्रदेश के बड़नगर कस्बे में हुआ था। 1952 में हिन्दी तथा 1953 में अर्थशास्त्र विषय से एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही आपने 'भीली के भाषा शास्त्रीय अध्ययन' पर विक्रम विश्वविद्यालय से Ph.D. की उपाधि प्राप्त की। म. प्र. शासन की महाविद्यालयीन शिक्षा सेवा में रहते हुए इन्दौर, गुना. बड़वानी, नीमच, जावरा, अर्हत् वचन, जुलाई 99

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