Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 70
________________ पत्रिका समीक्षा पांडुलिपियों के संरक्षण हेतु समर्पित संस्था की नवीन प्रस्तुति अनेकान्त दर्पण - अनेकान्त ज्ञान मन्दिर शोध संस्थान की शोध वार्षिकी। प्रवेशांक - 1999, सम्पादक - डॉ. रतनचन्द जैन - भोपाल एवं प्राचार्य निहालचन्द जैन, बीना। प्रकाशक - श्री अनेकान्त ज्ञान मन्दिर शोध संस्थान, छोटी बजरिया, बीना - 470 113 जि. सागर। समीक्षक - डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर। 20 फरवरी 1992 को सरल ग्रन्थालय के रूप में जिस संस्था की स्थापना हुई थी वह इसके संस्थापक एवं समर्पित साधक ब्र. संदीप जैन 'सरल' के अहर्निश श्रम से आज एक शोध संस्थान का रूप ले चुका है। मार्च 1995 से गाँव गाँव जाकर प्राचीन जैन पांडुलिपियों की खोज का उनका अभियान अब आन्दोलन बन चुका है। भाई संदीपजी ने अपनी टीम के साथ कार्य करते हुए 4 वर्षों में 200 ग्रामों का सर्वेक्षण कर लगभग 3500 पांडुलिपियों का संकलन किया है। संग्रहीत पांडुलिपियों, उनके वैशिष्ट्य आदि की जानकारी देने, पांडुलिपियों के संकलन, संरक्षण के बारे में सम्यक जनचेतना जाग्रत करने हेतु संस्था ने अपनी वार्षिकी के प्रकाशन का निर्णय किया, जिसकी सफल परिणति है - अनेकान्त दर्पण। विद्वान सम्पादक द्वय ने इस प्रवेशांक में संस्था एवं उसके कार्यक्षेत्र से सम्बद्ध महत्वपूर्ण साम्रगी का संकलन किया है, जो पठनीय एवं संकलनीय है। मुझे इस अंक के निम्नांकित आलेखों ने विशेष प्रभावित किया - 1. गंधहस्ति महाभाष्य के कुछ शोध बिन्दु - प्राचार्य कुन्दनलाल जैन, दिल्ली 2. पांडुलिपियों की सम्पादन विधि - डॉ. भागचन्द्र 'भास्कर', नागपुर 3. कतिपय विशिष्ट अप्रकाशित ग्रन्थ - ब्र. संदीप 'सरल', बीना 4. जैन पांडुलिपियों की वर्तमान दशा,दिशा व समाधान - डॉ. कस्तूरचन्द 'सुमन', श्रीमहावीरजी ब्र. संदीपजी का 'शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा अभियान - एक सर्वेक्षण' शीर्षक लेख भी प्रेरणादायक है। हमें विश्वास है कि अनेकान्त दर्पण शीघ्र ही अपनी आवृत्ति बढ़ाकर जिनवाणी की सेवा में और अधिक योगदान देगी। जैन विद्या का पठनीय षट्मासिक JINAMANJARI Editor - S.A. Bhuvanendra Kumar Periodicity - Biannual (April & October) Publisher - Brahmi Society, Canada-U.S.A. Contact - S.A. Bhuvanendra Kumar 4665, Moccasin Trail, Mississauga, Ontario, CANADA L4Z2W5 68 अर्हत् वचन, जुलाई 99

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