Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 79
________________ जैन विद्या विश्वकोश परियोजना का शुभारम्भ सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर पर दिनांक 22.4.99 को प्रात: बेला में पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के ससंघ पावन सान्निध्य में सर्वोदय जैन विद्यापीठ के तत्वावधान में संकलित होने वाले 'Encyclopaedia Jainica' (जैन विद्या विश्वकोश परियोजना) का शुभारम्भ एक कार्यशाला के आयोजन के साथ हुआ। इस उद्घाटन समारोह में दीप प्रजज्वलन श्रेष्ठिरत्न श्रीमंत अजितकुमारसिंहजी कासलीवाल, कोषाध्यक्ष - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के करकमलों द्वारा हुआ। दीप प्रजज्वलन के अनन्तर परियोजना न्यासी श्री मूलचन्द लुहाड़िया, मदनगंज-किशनगढ़ ने परियोजना के प्रबन्ध के संदर्भ में जानकारी देते हुए इस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की परियोजना का परिचय दिया। इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को परियोजना न्यासी श्री रतनलालजी बेनाड़ा, आगरा ने भी परियोजना की वित्तीय स्थितियों की जानकारी दी। श्री बेनाड़ा ने इस ज्ञान - यज्ञ हेतु अनिवार्य वित्तीय कोश में योगदान हेतु अपील भी की। इसके अनन्तर परियोजना के अकादमिक संयोजक व प्रशासक डॉ. वृषभप्रसाद जैन ने मंगलाचरण के साथ पूरी योजना के महत्त्व तथा अकादमिक पक्ष की जानकारी दी। उन्होंने परियोजना के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप व इसके द्विभाषी अर्थात् हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित होने की सूचना से अवगत कराया। उन्होंने यह भी कहा कि इस विश्वकोश में जैन धर्म, संस्कृति से संदर्भित प्रत्येक बिन्दु को समाहित करने का यत्न किया जायेगा। यह विश्वकोश जहाँ पुस्तक रूप में प्रकाशित होगा, वहीं कम्प्यूटर में प्रयोज्य सी.डी.रॉम के रूप में भी। इस प्रकार यह तकनीकी रूप में भी सर्वाधिक समृद्ध होगा। पांच माननीय जनों ने कम्प्यूटर में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु शब्दों को प्रविष्ट कर जैन विद्या विश्वकोश योजना का औपचारिक प्रारम्भ किया। उद्घाटन सत्र का संचालन ब्र. राकेश ने किया। इस अवसर पर पूरे देश से पधारे जैनविद्या के विद्वानों डॉ. भागचन्द्र 'भास्कर' - नागपुर, डॉ. शीतलचन्द जैन - जयपुर, डॉ. रतनचन्द जैन - भोपाल, डॉ. नन्दलाल जैन - रीवा, पं. शिवचरणलाल जैन - मैनपुरी, डॉ. फूलचन्द्र 'प्रेमी' - वाराणसी, डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन - श्रावस्ती, डॉ. अनुपम जैन - इन्दौर, डॉ. अभयप्रकाश जैन - ग्वालियर, डॉ. कुसुम पटेरिया - नागपुर, डॉ. पुष्पलता जैन - नागपुर, डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन - ग्वालियर / इन्दौर आदि विद्वानों ने पूज्य आचार्यश्री व मुनिसंघ को श्रीफल समर्पित किये। सभा के अन्त में पूज्य आचार्यश्री ने मंगल - आशीष के रूप में सम्बोधा। आचार्यश्री ने कहा कि यह विश्वकोश जिनवाणी को जनवाणी तक पहुँचायेगा। चूंकि जिनवाणी निःश्रेयस् की प्राप्ति का साधन होती है, अत: कोश सामान्यजन, आर्यिका तथा मुनि संघ आदि सभी के लिये मोक्ष प्राप्ति के साधन के रूप में होगा। आचार्यश्री ने कहा कि कोश राजा और कवि दोनों के लिये आवश्यक होता है। दोनों में से किसी का भी काम कोश के बिना नहीं चल सकता। कोश के लिये होश तथा जोश भी आवश्यक है। उनका मत था कि होश व जोश के बिना न तो कोश का निर्माण ही हो सकता है और न उसका उपयोग। उनकी भावना थी कि यह विश्वकोश आचार्य पल्लवित सिद्धान्त को लेकर शब्द से श्रुत तक ले जाने की यात्रा का महत्त्वपूर्ण साधन बनेगा। आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में ध्वनि, शब्द और अर्थ की त्रियुति का उल्लेख करते हुए अर्थात्मा के भाव को कोश के लिये आवश्यक कहा और अर्थात्मा को ही मोक्ष का सहायक बताया। अंत में आचार्यश्री ने इस रूप में मंगल आशीष दिया कि यह योजना जन-जन के कल्याण का कारक होगी, अत: उनका शुभाशीष सबके साथ है। इस उद्घाटन सत्र के अनन्तर दो दिन तक चलने वाली 'जैनविद्या विश्वकोश' संबंधित कार्यशाला में देशभर से पधारे विद्वानों ने परियोजना परिचय पुस्तिका के स्वरूप को अन्तिम रूप दिया, कोश के खण्डों के वर्गीकरण के लिये आधार तय किये तथा प्रविष्टि शीर्षक सूची का विश्लेषण किया। - डा. वृषभप्रसाद जैन, अकादमिक संयोजक अर्हत् वचन, जुलाई 99 73

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