Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 85
________________ मत-अभिमत ___ अर्हत् वचन पत्रिका का माह अप्रैल 99 का अंक प्राप्त हुआ। आपकी सभी सम्पादकीय पठनीय होती है और मैं उन्हें बराबर पढ़ता हूँ पर आपने इस अंक की सम्पादकीय में जैन समाज की राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का कुछ ऐसे बिन्दुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है जो किसी एक के बस की बात नहीं है और वे केवल संस्थाओं के माध्यम से ही क्रियान्वित हो सकते हैं। इन बिन्दुओं को प्रकाश में लाने के लिये मैं आपको बधाई देता हूँ। मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि सामाजिक संगठन अपने कार्यक्रम तय करते समय इन बिन्दुओं पर अवश्य विचार करेंगे। आपका यह अभिनव प्रयास सराहनीय है। इस अंक में विद्वान श्री गलाबचन्दजी जैन का आलेख 'विशाला (बद्रीनाथ)' पढा। आदरणीय लेखक महोदय ने पृष्ठ 54 पर पहले पैराग्राफ पर लिखा है कि - 'भगवान ऋषभदेव के दीक्षा कल्याणक महोत्सव को देखने के लिये महारानी मरूदेवी सहित महाराज नाभिराय सैकड़ों राजाओं और पुरजनों के साथ ऋषभदेव की पालकी के साथ चल रहे थे। इसके पश्चात नाभिराय कब तक जीवित रहे तथा अपना शेष जीवन कहाँ और किस प्रकार व्यतीत किया इसकी चर्चा शास्त्रों में कहीं देखने को नहीं मिली।' वहीं अगले पैराग्राफ में लिखते हैं कि - 'महाराज नाभिराय ने धर्म मर्यादा की रक्षा के लिये अपने पुत्र ऋषभदेव का राज्याभिषेक कर स्वयं विशाला बद्रिकाश्रम में प्रसन्न मन से उत्कृष्ट तप तपते हुए यथाकाल महिमापूर्ण जीवन मुक्ति निर्वाण प्राप्त किया।' ___उपरोक्त दोनों कथन से महाराज नाभिराय के जीवन के संबंध में पाठक को भ्रांति होती है। अगर विद्वान लेखक महोदय वास्तविक स्थिति से अवगत करा देते तो श्रेयस्कर होता। खैर! यदि विद्वत समुदाय महाराज नाभिराय के शास्त्रोक्त जीवन की जानकारी दे सकें तो बड़ी कपा होगी। . माणिकचन्द जैन पाटनी, इन्दौर महामंत्री - दि. जैन महासमिति ए - 16, नेमीनगर, इन्दौर कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर का यह पुस्तकालय अपने वास्तविक अर्थ को प्रकट करता हुआ सा प्रतीत होता है अर्थात् ज्ञान की पीठिका। यहाँ की उत्तम व्यवस्था, सुव्यवस्थित साहित्य तथा दुर्लभ अनुशासन पाठकों को अपनी ओर बरबस ही आकर्षित करता है। इस सुव्यवस्था का सम्पूर्ण श्रेय यहाँ के सम्पूर्ण कार्य की अहर्निश देख-रेख करने वाले ज्ञानपीठ के सचिव परम श्रद्धेय डॉ. अनुपम जैन को है, जिन्होंने अपनी अनुपम कार्य शैली से सम्पूर्ण जैन समाज में एक सर्वोत्तम स्थान बनाया है। मैं परम पिता परमेश्वर से उनके स्वस्थ, समृद्ध और सुखी जीवन की कामना करता हूँ तथा मंगलमय प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु आपको चिरायु प्रदान करे। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ। . डॉ. राजेशकुमार अग्रवाल सनातन धर्म इण्टर कालेज, सदर, मेरठ-250002 आज संयोग से कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में बैठकर अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ। जैन दर्शन और संस्कृति की अमूल्य धरोहर को समेटकर इस ग्रंथालय में सुव्यवस्थित तौर पर रखा गया है। आदरणीय डॉ. अनुपम जैन का वात्सल्य पाकर मैं अपने को धन्य समझता हूँ। . राकेश केशरिया बड़ागांव (घसान), टीकमगढ़-472010 अर्हत् वचन, जुलाई 99 79

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