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कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर)
वर्ष - 11, अंक - 3, जुलाई 99, 49 - 52 णमोकार महामंत्र - साधना के स्वर
एक अध्ययन -जयचन्द्र शर्मा *
ब्रह्माण्ड में निनादित नाद तरंगें जब विभिन्न नक्षत्रों से टकराती हैं, तब आहत - नाद उत्पन्न होता है। आहत - नाद के दो भेद हैं - एक अमधुर - नाद एवं द्वितीय सुमधुर - नाद। सुमधुर - नाद से श्रुति, श्रुति से स्वर, स्वर से धुन (राग) की उत्पत्ति होती है।
समस्त संसार का संगीत सप्त-स्वरों पर आधारित है। स्वर एक मधुर ध्वनि है। यह ध्वनि चेतन एवं अचेतन पदार्थों को प्रभावित करती है। आदिकाल में मानव को सिर्फ तीन ध्वनियों का ज्ञान हुआ। लिंग भेद के अनुसार स्त्री का उदात्त स्वर, पुरुष का अनुदात्त स्वर एवं बालक का स्वरित स्वर प्रकृति की देन है। सामवेद की ऋचाओं का गान तीन ध्वनियों (स्वरों) पर आधारित था। संगीत शास्त्रों में तीन स्वरों के समूह को 'सामिक' जाति कहा है।
गायन एवं वादन क्रिया के लिये तालछंदों का सर्वाधिक महत्व है। ताल को संगीत का प्राण कहा है। भारतीय संगीत में चार, छह, सात एवं आठ मात्राओं की तालों का उपयोग लोक - संगीत एवं सुगम संगीत के साथ किया जाता है। णमोकार महामंत्र की लय चार मात्रा के तालछन्द से संबंधित है जिसे कहरवा ताल कहते हैं। किन्तु महामंत्र का प्रथम पद ॐ सहित आठ मात्रा का है, जिसे श्रावक सोलह मात्राओं की लय में प्रस्तुत करते हैं। संगीतकला दृष्टि से यह दोषपूर्ण नहीं है।
उक्त पद को अन्य तालछन्दों में भी गाया जा सकता है। जैसे, दादरा - ताल को छह मात्राओं के आधार पर गाते हैं तो पद की लय निम्न प्रकार होगी -
ताल दादरा - छह मात्रा, दो भाग, पहली मात्रा सम, चौथी मात्रा खाली ___ओ ऽ ऽम ण मो ऽ | अ रि हं । ता णं 5
उपर्युक्त ताल दो आवर्तन में 'पद' की लय दर्शाता है।
दो आवर्तन की ताल के साथ बारह मात्राओं का तालछन्द चौताला एवं इकताला का भी प्रयोग किया जा सकता है। चौदह मात्राओं को आधार मान कर गाने पर किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है। संगीतलिपि का अवलोकन कीजिये। प्रत्येक पद का अन्तिम अक्षर 'ण' को चार मात्राओं में दर्शाया गया है। चार मात्राओं के स्थान पर दो मात्राओं का उपयोग करें तो पद का तालछन्द दीपचन्दी, आड़ा चारताल, झूमरा आदि तालों के अनुरूप होगा।
इसी पद को दस मात्राओं के तालछन्द में गाते हैं तो कुछ कठिनाई आयेगी। क्योंकि ताल के विभाग दो, तीन, दो-तीन मात्राओं के हैं। पद की मात्राओं में इस ताल का अंश विद्यमान है पर गाने वालों को इसकी लय के अनुरूप गायन हेतु अभ्यास करना
* निदेशक-श्री संगीत भारती, शोध विभाग, बीकानेर - 334007