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हैं, अर्थात परिणमन करते हैं, उसमें बाहय निमित्त कारण काल द्रव्य है। इसलिए वर्तना काल का लक्षण या उपकार कहा जाता है।
कि
द्रव्य संग्रह में लिखा है 'वट्ठलक्खो य परमट्ठो' अर्थात् वर्तना लक्षण युक्त निश्चयकाल है । द्रव्य संग्रह में ही लिखा है जो लोकाकाश के एक एक प्रदेश में रत्नों की राशि के समान परस्पर भिन्न होकर एक एक स्थित हैं, वे कालाणु है और असंख्यात द्रव्य हैं । "
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को द्रव्य रूप सिद्ध करता है।
प्र.
समा.
प्र.
समा.
पंचास्तिकाय की तात्पर्यवृत्ति टीका 12 में एक शंका समाधान किया गया है जो 'कालाणु'
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समयरूप ही निश्चय काल है, उस समय से भिन्न क्या अन्य कोई कालाणु द्रव्यरूप निश्चय काल नहीं है ?
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समय तो कालद्रव्य की सूक्ष्म पर्याय है स्वयं द्रव्य नहीं है।
समय को पर्यायपना किस प्रकार प्राप्त है ?
पर्याय उत्पत्ति विनाशवाली होती है 'समय उत्पन्न प्रध्वंसी है,' इस वचन से समय को पर्यायपना प्राप्त होता है, और वह पर्याय द्रव्य के बिना नहीं होती, तथा द्रव्य निश्चय से अविनश्वर होता है। इसलिए काल रूप पर्याय का उपादान कारणभूत काला रूप काल द्रव्य ही होना चाहिए न कि पुद्गलादि क्योंकि उपादान कारण के सदृश्य ही कार्य होता है।
काल और विज्ञान
कहावत है कि समय तीर की तरह भागता है और गुजरा हुआ समय वापस नहीं आता। वैज्ञानिकों ने इस लोक प्रचलित कहावत को ध्यान में रखते हुए अनेकों रहस्यों को उजागर किया। सन् 1927 में ब्रिटिश अन्तरिक्षवेत्ता सर आर्थर एडिंगटन ने सापेक्षतावाद के तहत Arrow of Time अर्थात् समय के तीर का अन्वेषण किया। क्वांटम सिद्धांत के जन्मदाता वानर हाइसनबर्ग, विख्यात वैज्ञानिक थ्रोडिंगर तथा आइन्सटीन ने समय के बारे में एक नयी बात बतायी। उनके अनुसार काल गति को वर्तमान से भविष्य की ओर के दायरे में नहीं बांध सकते। ऐसा भी हो सकता है कि समय वर्तमान से भूत की ओर चलने लगे। उनके इस प्रतिपादन से विज्ञान जगत में हलचल मच गयी, परन्तु उनके तर्क तथ्य एवं प्रमाण सम्मत विवेचन को सभी को स्वीकारना पड़ा।
आइन्स्टीन के आपेक्षिकता के सिद्धांत (The Theory of Relativity) 13 ने भौतिक विज्ञान में अनेक वृहद् परिवर्तन ला दिये। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन आकाश और काल की धारणा संबंधी थे। सुप्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक मिन्काउस्की ने आपेक्षिकता के सिद्धान्त का गणितीय प्रतिपादन जिस रूप में किया, उससे यह तथ्य निकला कि विश्व 'आकाश काल की एक सम्मिलित चतुर्विमीय सततता' (Four Dimensional Continum of Space and Time) के रूप में है। अधिकांश रूप में गणित के साथ संबंधित होने से इस तथ्य को यद्यपि व्यवहारिक भाषा में समझना अत्यंत कठिन है, फिर भी उदाहरणों के द्वारा इसका स्पष्टीकरण किया जा सकता है।
आपेक्षिकता के सिद्धान्त के अनुसार आकाश की तीन विमायें (Dimensions ) और काल की एक विमा मिलकर एक चतुर्विमीय अखण्डता का निर्माण करती है और हमारे वास्तविक जगत में होने वाली सभी घटनायें इस चतुर्विमीय सततता की विविध अवस्थाओं
अर्हत् वचन, जुलाई 99