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भटकता नहीं, फलत: उसमें विसंगतियों और विकृतियों का प्रवेश नहीं होता किन्तु यह बात भी निश्चित है कि वैज्ञानिक विज्ञान को जानते हुए भी कभी भी गृहीत और अगृहीत मिथ्यात्व से दूर नहीं हो पाते हैं क्योंकि मिथ्यात्व का नाश धर्म के माध्यम से ही होता है।
अत: आधुनिक विज्ञान में से उपादेय भूत वस्तुतत्व को जानकर धर्म दर्शन के विज्ञान को समझना नितान्त आवश्यक है। संदर्भ स्थल - 1. द्रव्यसंग्रह, नेमिचन्द्र सिद्धान्त देव, गाथा - 24 2. तत्वार्थ सुत्र, आचार्य उमास्वामी, 5/39 3. वही 4. विश्वप्रहेलिका - मुनि महेन्द्र कुमार, पेज 83 5. भगवती सूत्र (जैन श्वेताम्बर परम्परा मान्य चतुर्थ जैन आगम) 6. सर्वार्थसिद्धि, आचार्य पूज्यपाद, 5/22 7. द्रव्यसंग्रह, गाथा -21 8. वही टीका 9. पंचास्तिकाय, आचार्य कुन्दकुन्द - गाथा 25
समओ णिमिसो कट्ठा कला य णाली तदो दिवास्ती।
मासोदुअवण संवच्छरोत्ति कालो परायत्तो।। 10. नियमसार - गाथा-9 की टीका। 11. द्रव्यसंग्रह - गाथा -22
"लोयायासपदेसे इक्किक्के जेठिया ह इक्किक्का।
रयणाणं रासीइव ते कालाणु असंखदव्वापि।। 12. पंचास्तिकाय ता.वृ. 26/55/8 (जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, पृ. 84) 13. विश्व प्रहेलिका - मुनि महेन्द्रकुमार, पृ. 34 14. Physics & Philosophy - P. 102-103 15. The Universe and Dr. Einstine - P. 21-22 16. वही, - P. 78 17. The Philosophy of Space & Time - P. 279 18. The Nature of time - P. 300-301 19. अखण्ड ज्योति, मई 97 पेज 9 20. Time & the Science, in Foreword 21. वही
लावावा
प्राप्त - 21.11.98
अर्हत् वचन, जुलाई 99