Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 39
________________ 2. निम्नतर (0 या 1) कोटि की वैद्युत प्रकृति के परमाणुओं के बीच बंध नहीं होता। 3. यदि परमाणुओं में वैद्युत गुण समान हों, तो उनमें विशेष परिस्थितियों में ही बंध होता है। यदि विरोधी गुण समान हों, तो भी बंध संभव है (हाइड्रोजन अणु या सोडियम हाइड्राइड आदि)। पूर्वाचार्यों की तुलना में अमृतचंद्र सूरि 12 (तत्वार्थसार) की व्याख्या के अनुसार, यह नियम यहां सकारात्मक रूप में दिया गया है। इसके पूर्व के आचार्यों ने इस नियम को नकारात्मक रूप में माना था। इससे अनेक कठिनाइयां उत्पन्न हुई होंगी। इस प्रकरण में अमृतचंद्र सूरि का योगदान विशेष महत्वपूर्ण है और आधुनिक मान्यताओं के समकक्ष है। 4. जिन परमाणुओं में वैद्युत गुण (समान या असमान) दो से अधिक होता है, उनमें बंधन होता है। इस नियम की व्याख्या में भी मतभेद है। पर ऐसा प्रतीत होता है कि वाचक उमास्वाति की व्याख्या, आज की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। पं. फूलचंद्र शास्त्री 13 का कथन है कि कुंदकुंद और उमास्वामी की तुलना में षटखंडागम की परमाणु - बंध संबंधी व्याख्या अधिक व्यावहारिक है। इसके विपर्यास में श्वेताम्बर - व्याख्या बीसवीं सदी तक के अनुरूप जाती है। इससे संबंधित सारणी शास्त्री एवं जवेरी ने अपनी पुस्तकों में दी है। इन सारणियों से स्पष्ट है कि परमाणुओं की शास्त्रीय बंधकता के उपरोक्त रूप वर्तमान में मान्य तीन प्रकार की संयोजकता के समकक्ष ही लगते हैं। परमाणु मूलत: तो एक- समान होते हैं पर व्यावहारिक दृष्टि से उन्हें (1) सूक्ष्म या आदर्श और (2) व्यवहार के रूप में विभाजित किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि शास्त्रों में परमाणु - बंध या उनके अनेक गुणों के निरूपण का आधार व्यवहार परमाणु ही होंगे क्योंकि आचार्यों ने बंधन के सिद्धांत कहकर भी उनके उदाहरण नहीं दिये हैं। साथ ही, आज यह सुज्ञात है कि लघुतर या मूलभूत कणों के संयोग - वियोग में ऊर्जा की, सामान्य संयोगों की तुलना में, अत्यधिक मात्रा व्ययित होती है। यद्यपि परमाणुओं के द्रव्य. क्षेत्र. काल और भाव के रूप में चार भेद बताये गये हैं, फिर भी उनके रूप, रस, गंध, स्पर्श के रूप में चार भौतिक गुणों के क्रमचय - समुच्चय से 2x5X5X4 = 200 भेद भी हो सकते हैं। यह विवरण दिगम्बर ग्रंथों में तो नहीं, पर श्वेताम्बर ग्रंथों में सुलभता से पाया जाता है। भौतिक गुणों पर आधारित परमाणु - वर्गीकरण जैन दर्शन की एक विशेषता है। आज भी द्रव्यमान के आधार पर परमाणुओं का विभाजन किया गया है। परमाणुओं के विभाजन के उपरोक्त रूपों के अतिरिक्त एक अन्य रूप भी है जिसका उल्लेख भगवती में पाया गया है। इसका स्वरूप सूक्ष्मतर है। इसके अनुसार, परमाणु दो प्रकार के होते हैं - 1. चतुस्पर्शी : (शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष स्पर्श) 2. अष्ट - स्पर्शी : (शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, गुरु, लघु, मृदु, कठोर स्पर्श) चतुस्पर्शी परमाणु, फलत: उर्जा रूप होते हैं जबकि अष्टस्पर्शी परमाणु सामान्य परमाणु के समान होते हैं। अकलंक भी 14 अष्टस्पर्शी परमाणुओं को स्कंध (व्यवहार परमाणु) मानते हैं। उनके अनुसार भी, द्रव्यमान और घनत्व मूल परमाणु का गुण नहीं है। यह पाया गया है कि परमाणु संबंधी उपरोक्त जैन मान्यतायें अमृतचंद्र सूरि के युग के बाद यथावस्थित हैं। अर्हत् वचन, जुलाई 99

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