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पृथ्वी (मध्यलोक - जम्बूद्वीप) की आकृति
आज के वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक साधनों के विभिन्न प्रयोगों द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि - 1. दूसरे ग्रहों के समान पृथ्वी भी एक गोला है किन्तु ध्रुवों पर यह कुछ चपटी है। जैनागम
के मध्यलोक (जम्बूद्वीप) की रचना के वर्णन के आधार पर दोनों में संगति प्रतीत होती है। जैनागम के अनुसार मध्यलोक में पृथ्वी का विस्तार / आकार थाली के सदृश है। 'इस मध्यलोक के बीचों बीच एक लाख योजन व्यास वाला अर्थात् चालीस करोड़ मील
विस्तार वाला जम्बूद्वीप स्थित है।' 2. इस जम्बूद्वीप में छह कुलाचल हैं, उनके नाम हैं - हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील,
रूक्मि, शिखरी जिनकी ऊँचाई क्रमश; 100, 200, 400, 400, 200, 100 योजन
3. अब यदि हम भरत क्षेत्र से लेकर ऐरावत क्षेत्रों के बीच में स्थित इन 6 कुलाचलों
की उँचाई एवं रचना को देखें तथा भरत क्षेत्र से ऐरावत क्षेत्र तक कुलाचलों की उँचाई पर से एक कृत्रिम रेखा खींचें तो पूरा जम्बूद्वीप थालीनुमा विस्तार वाला होते हुए भी ऊँचाई से देखने पर एक गोला के सामन दिखाई देगा जो ध्रुवों पर (भरत ऐरावत क्षेत्रों में) चपटा होगा।
आधुनिक भूगोल वेत्ताओं का यह कथन कि 'पहले पृथ्वी आग का गोला थी, उसमें से गर्म पिघला हुआ लावा निकलकर चारों तरफ फैलता रहा जिसने कालान्तर में ठण्डा होकर पृथ्वी का रूप धारण कर लिया। इस सन्दर्भ में भी प्रो. मुकेश जैन - जबलपुर का यह निष्कर्ष तर्कसंगत है कि कोई भी पिघली हुई वस्तु जब घूमते हुए आधार पर चारों ओर फैलेगी तो उसका आकार थाली सदृश ही होगा।
पृथ्वी की संरचना के बारे में डॉ. कस्तूरचन्द्र सुमन - श्रीमहावीरजी का यह कथन भी विशेष महत्व रखता है कि 'भू की संरचना परिवर्तनशील है। आज हम जहाँ नदियाँ प्रवाहित देखते हैं, वहाँ सुदूर समय पूर्व पहाड़ थे, जहाँ पहले जंगल थे, वहाँ आज बड़े बड़े शहर हैं आदि-आदि।' इस तर्क के आधार पर हजारों लाखों वर्ष पूर्व वर्णित पृथ्वी का थालीनुमा आकार स्वयं में पूर्ण सत्य है। पहले पृथ्वी आग का गोला थी
आज के वैज्ञानिक यह मानते हैं कि 'पृथ्वी पहले आग का गोला थी। यह धीरे - धीरे ठंडी हुई। फिर शनै: शनै: उस पर जल, वनस्पति, जीव-जन्तु आदि उत्पन्न हुए।' यदि इस कथन पर जैनागम के सन्दर्भ में विचार करें तो दोनों वर्णनों में समानता परिलक्षित होती है।
जैनागम के अवसर्पिणी काल के 6ठे भाग दुखमा - दुखमा और उत्सर्पिणी काल का प्रथम भाग सुखमा - दुखमा की स्थिति का चित्रण ध्यान देने योग्य है। यह वर्णन प्रलय
अर्हत् वचन, जुलाई 99