________________
4. कुंदकुंद, आचार्य : नियमसार, दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर, 1985 5. आर्यरक्षित : अनुयोगद्वार सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1987 6. आचार्य यतिवृषभ : त्रिलोकप्रज्ञप्ति - 1, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, 1963 7. सुधर्मा स्वामी : भगवती सूत्र, 1-7, साधुमार्गी संस्था, सैलाना, 1937-52 8. वही : स्थानांग, जैन विश्वभारती, लाडनूं, 1976 9. आचार्य उमास्वामी : तत्वार्थ सूत्र, वर्णी ग्रंथमाला, काशी, 1949 10. आचार्य पूज्यपाद : सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1971 11. आचार्य, धरसेन : षट्खंडागम - 14, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, 1982 12. अमृतचंद्र सूरि : तत्वार्थसार, वर्णी ग्रंथमाला, काशी, 1970 13. फूलचंद्र शास्त्री (सं.) : तत्वार्थ सूत्र, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1957 14. अकलंक, भट्ट : तत्वार्थ वार्तिक - 2, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1957 15. जैन, एन.एल. : साइंटिफिक कंटेंट्स इन प्राकृत कैनन्स, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, काशी, 1996
- : उत्तराध्ययन, तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, 1967 17. आर्य, श्याम : प्रजापना सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1984 18. - : जीवाभिगम सूत्र, शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, 1971 19. देखिये संदर्भ 15, पृ. 206 - 221 20. जैन, एन. एल. : कर्म और कर्मबंध, एक विवेचन, (डॉ. कस्तूरचंद कासलीवाल अभि. ग्रंथ) रीवा, 1997 21. - तंडुल वैचारिक, साधुमार्गी संस्थान, बीकानेर, 194922. उग्रादित्याचार्य : कल्याणकारक, रावजी सखाराम ग्रंथमाला, शोलापुर, 1940
16.
प्राप्त : 20.3.97
आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज का आवश्यक सन्देश
मैं शारीरिक शिथिलता एवं आयु की अधिकता आदि परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए मूलसंघ की आम्नाय के अनुसार 'नियम - सल्लेखना' दिनांक 16 जून, 1999 (समय मध्याह्न 11.22 बजे) को ले रहा हूँ। शास्त्रों में निर्दिष्ट विधि के अनुसार मैं इसका अनुपालन करूँगा। हमने अपने इस मनुष्य भव की आयुकर्म के अन्तिम वर्ष किसी भी सिद्धक्षेत्र पर ही व्यतीत करके आत्मतत्त्व की आराधना एवं समताभाव की साधनापूर्वक शांति से पूर्ण करने का विचार किया है। (मृत्युमित्रप्रसादेन प्राप्तये सुखसंपदः)
मैं समस्त श्रावक - समुदाय एवं भक्तजनों को यह सानुराग - निर्देष देना चाहता हूँ कि मेरी उपस्थिति में या उसके बाद मेरी किसी भी प्रकार की तदाकार प्रतिमा (स्टेच्यू आदि), चरण - चिह्न आदि न बनाये जायें। न ही मेरे नाम से किसी संस्था, भवन आदि का नामकरण किया जाये। इन कार्यों के लिये हमारे प्रात:स्मरणीय परमपूज्य आचार्यप्रवर कुन्दकुन्द, धरसेन, उमास्वामी, पुष्पदन्त, भूतबलि, गुणधर आदि मूलसंघ के आचार्यों के नाम ही रखे जायें। या फिर तीर्थंकरों एवं भगवन्तों के नाम पर इनके नामकरण हों।
मेरी इस भावना का सभी भक्तजन एवं धर्मानुरागीजन आदर के साथ पालन करें - ऐसा अभिप्राय है।
सुखदु:खजीवितमरणोपग्रहाश्च। - (तत्वार्थ सूत्र 5 / 20)
42
अर्हत् वचन, जुलाई 99