Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 37
________________ होते हैं। इस प्रकार जैन शास्त्रों में रसायन की चार शाखाओं का समेकीकृत तो नहीं, पर यत्र - तत्र बिखरा हुआ वर्णन मिलता है। ये सभी पुद्गल पदार्थ हैं। अध्यात्मप्रधानी जैनाचार्यों ने इन विवरणों के माध्यम से रसायन - विज्ञान के अनेक सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पक्षों पर प्रकाश डाला है। जैन शब्दावली में हम रसायन को 'पुद्गलायन' कह सकते हैं। रसायन विज्ञान के विविध पक्षों को प्रस्तुत करने वाले जैनाचार्यों की सूची काफी लम्बी है। इनमें आचार्य गौतम स्वामी और सुधर्मा स्वामी, आचार्य पुष्पदन्त, भूतबलि, कुन्दकुन्द, उमास्वामी, पूज्यपाद, अकलंक और विद्यानंद, धवलाकार वीरसेन एवं उग्रादित्याचार्य प्रमुख हैं। इनके द्वारा लिखित एवं उपलब्ध साहित्य के आधार पर इस क्षेत्र में उनके समग्र योगदान की चर्चा की जा रही है। आगम ग्रंथों में रसायन शास्त्र दिगम्बर परम्परा में भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट एवं गणधर - ग्रंथित आगमों का, अनेक कारणों से, संभवत: अकलंग युग के बाद, स्मृति - ह्रास मान लिया है पर श्वेताम्बर परम्परा में अनेक वाचनाओं के आधार पर परिष्कृत परिमार्जित आगम ग्रंथ पाये जाते हैं। यह परम्परा उन्हें गणधर सुधर्मा स्वामी द्वारा ग्रंथित मानती है। इन ग्रंथों में न केवल रसायन शास्त्र संबंधी विवेचनायें ही हैं, अपितु धार्मिक सिद्धांतों को भी भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रमों के उदाहरणों से उद्घाटित किया गया है। भगवती सूत्र में परमाणु एवं स्कंधों के विषय में पर्याप्त चर्चा आई है। आहार और औषध संबंधी रसायन तो अनेक आगमों में पाया जाता है। आगमोत्तर काल में रसायन शास्त्र आगमोत्तर काल के अनेक आचार्यों के ग्रंथों में रसायन के अंतर्गत निम्न विषय पाये जाते है - 1. परमाणुवाद - इसमें परमाणु का स्वरूप, प्रकृति, भेद - प्रभेद और परमाणु - बंध की प्रक्रिया समाहित होती है। 2. स्कंधवाद - इसमें परमाणुओं के बंध से निर्मित स्कंधों का स्वरूप और उसके भेद - प्रभेदों के साथ अनेक विशिष्ट स्कंधों का वर्णन समाहित है। 3. भौतिक और रासायनिक क्रियायें - इसके अंतर्गत न केवल भिन्न-भिन्न कोटि की क्रियायें ही बताई गई हैं, अपितु उनके निदर्शन से धार्मिक सिद्धांत भी समझाये गये हैं। 4. कर्मवाद - अनेक प्रकार के परमाणु समूहों में कर्म - वर्गणा भी एक है जो जीव के साथ संबद्ध होकर उसके भवभ्रमण में कारण होती है। इन कर्म - वर्गणाओं की विवेचना अन्य तंत्रों (Systems) की तुलना में जैन तंत्र में सूक्ष्म और गहन रूप से की गई पदार्थों की मौलिक रचना - परमाणुवाद प्राय: उपरोक्त सभी आचार्यों ने पदार्थों की मौलिक रचना के दो घटक बताये हैं - (1) अणु / परमाणु और (2) भौतिक या रासायनिक स्कंध जो परमाणुओं के समुच्चय से मूलत: निर्मित होते हैं। इनमें परमाणु को 'अणु' भी कहा गया है। हम यहां उसे 'परमाणु' ही कहेंगे। इसके गुणों में अविभागित्व, अविनाशित्व आदि अनेक गुण समाहित हैं। मूलत: अर्हत् वचन, जुलाई 99 35

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