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5. 'रस' चतुर्गुणी पुद्गल द्रव्य का एक अविनाभावी गुण है जो उपरोक्त अर्थों को समग्रतः
समाहित करता है। 6. 'रस' का अर्थ पारा भी होता है। इसके आधार पर रसेश्वर दर्शन का विकास हआ।
पारे के अनेक जीवनरक्षक एवं जीवन नाशक पदार्थ बनते हैं। इस आधार पर 'रस- वाणिज्य'
शब्द प्रचलित हुआ जिसमें सावद्य पदार्थों के व्यवसाय आते हैं। 7. 'रस' का अर्थ 'द्रव' या तरल पदार्थ भी होता है जिन्हें भार की तुलना में आयतन
के रूप में मापा जाता है। 'रस' के आधार पर ही धान्यमान के बदले 'रस - मान'
का प्रचलन हुआ। 8. 'रस' एक विशेष प्रकार की ऋद्धि भी होती है जिसके धारक के दर्शन एवं वचन
से रूक्ष आहार की कोटि स्वादिष्ट आहार पदार्थों में परिणत हो जाती है। 9. कर्मवाद के अनुसार, इसका बंध चार प्रकार का होता है। इसमें से चौथा बंध अनुभाग/ अनुभाव
या रसबंध भी कहलाता है। यहां 'रस' का अर्थ कर्मबंध की तीव्रता एवं विपाक से
संबंधित है। 10. 'रस' जैन जगत के शिखरी पर्वत के एक शिखर का नाम भी है। 11. 'रस' पर्वत - शिखर पर रहने वाली देवी रसदेवी कहलाती है। 12. साहित्यकारों एवं मनोवैज्ञानिकों को आनंद - दाता के रूप में नव या ग्यारह 'साहित्यिक रस' भी माने गये हैं।
फलत: 'रस' शब्द से भौतिक और भावात्मक - दोनों प्रकार के अर्थ लिये जाते हैं। 'रस' पद पुद्गल द्रव्य को सैद्धांतिकता देता है और जैन भूगोल को संज्ञायें देता है। हम यहां 'रस' शब्द के भौतिक अर्थों के आधार पर ही 'रसायन' की चर्चा करेंगे।
शास्त्रों में 'रस' शब्द के अतिरिक्त, 'रस - परिणाम' शब्द भी आता है। चूंकि जैनों में रूप, रस, गंध एवं स्पर्श अविनाभावी होते हैं, अत: इनमें होने वाले भौतिक या रासायनिक परिवर्तन इस पद से संकेतित होते हैं। प्रारंभिक युग में मुख्यत: भौतिक परिवर्तन ही समाहित थे। उत्तरवर्ती काल में अनेक रासायनिक परिवर्तन भी (भोजन का चयापचय, मद्य आदि का किण्वन द्वारा निर्माण आदि) समाहित होते रहे हैं। फलत: शास्त्रीय 'रस - परिणाम' शब्द वर्तमान रसायन शब्द के पूर्णत: तो नहीं, पर अंशत: समकक्ष माना जा सकता है।
यह तो स्पष्ट नहीं है कि सर्वजीववादी जैनों ने अजीव द्रव्यों - विशेषकर पुद्गल द्रव्य की मान्यता कब से स्वीकार की है, पर शस्त्रोपहति से निर्जीवकरण की चर्चा अवश्य शास्त्रों में आयी है। पुद्गल शब्द जैन और बौद्धों का विशिष्ट परिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ जीव और आत्मा-दोनों लिया जाता था। परन्तु कुछ समय बाद पुद्गल अजीव एव मर्त द्रव्य के लिये प्रचलित हो गया। चंकि पुदगल का एक गुण 'रस' भी है, अत 'रस' शब्द में केवल औषध और आहार - पदार्थों के साथ अन्य पदार्थ भी समाहित हो गये एवं रसायन में सभी प्रकार के 'पुदगल परिणाम' समाहित हुए। वर्तमान में अन्न - पाचन और रस निर्माण की क्रिया जीव रसायन कहलाती है, औषध, विष, वाजीकर पदार्थ चिकित्सा - रसायन के अन्तर्गत आते हैं। विभिन्न प्रकार के धान्य एवं प्रमुख खाद्य पदार्थ कार्बनिक रसायन में आते हैं और पारद एवं पारद के यौगिक, लवण आदि अकार्बनिक रसायन में समाहित
अर्हत् वचन, जुलाई 99