Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 33
________________ वास्तविक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे है सर जार्ज पोस्टर ER.S. (Unesco) तो इस बात को खुलकर लिखते हैं21 Scientific method has made three major contributions to our concept of time - 1. First, it has given a definition to the direction of time through the second Law of thermodynamics and its statistical mechanical interpretation. 2. Second, it has revealed the inseparable connection between time & space and the relativity of time measurments from one observer to another, and - 3. Thirdly, it has shown the limits of certainty in measurements of quantities made in finite intervals of time. We can hardly claim that, as a result of these discoveries, we understand better the meaning of time, on the contrary, they have merely emphaisized how very for we are from any such understanding. इस प्रकार हम देखते है कि काल के विषय में विज्ञान तमाम खोज करने के बाद भी अपने को अपूर्ण मानता है। वास्तव में प्रत्यक्षत: विज्ञान केवल भौतिक चीजों की सच्चाईयों को जानने का उपक्रम है। पर संधान - अनुसंधान की प्रक्रिया के माध्यम से वह सम्यक् ज्ञान का किंचित साधन अवश्य बन जाता है और इस प्रकार वह अध्यात्म की राह भी प्रशस्त करता है। धर्म और विज्ञान दोनों का लक्ष्य सत्य की शोध है। धर्म का विषय आत्मा के सत्य को जानना है, विज्ञान का लक्ष्य पदार्थ जगत के सत्य को जानना है। धर्म का सत्य और विज्ञान का सत्य मिलकर जिस सत्य को उद्घाटित करते हैं और उस तक पहुँचने में स्वयं को प्रवृत्त करना ही आध्यात्म की यात्रा है। विज्ञान के अन्वेषण और उन पर आधारित उपकरण निर्जरा के निमित्त है या नहीं - यह विवाद का विषय हो सकता है पर उसमें से अधिकांश आस्रव की गति को धीमी करते हैं और इस तरह संवर की साधना में सहायक बनते हैं। प्राचीन समय में धर्म दर्शन का उदभव श्रद्धाजनित नहीं था। प्रारंभ में धर्म के पीछे भी विज्ञान की ही तरह बुद्धि, विवेक, विचार, तर्क, हेतु प्रयोजन युक्ति, कारण और न्याय ही रहे हैं। इनके आधार पर धर्म दर्शन की जो परिभाषा बनी, कालान्तर में उसकी गलत व्याख्यायें हुयीं। फलस्वरूप धर्म में विसंगतियों और विकृतियों का समावेश हुआ। सम्यक्दर्शन और सम्यकज्ञान के अभाव ने उन विकृतियों को धर्म का परिधान पहना दिया। कुछ का आग्रह रहा और कुछ का अज्ञान - जब दोनों मिले तो विवेक और बुद्धि की जगह अंध श्रद्धा ने ले ली। समय बीतता गया। श्रद्धा के आसन पर अंधश्रद्धा कब आरूढ हो गयी पता नहीं चला दृष्टि आसन पर टिकी रही और हम भटक गये। __ हम आत्मकल्याण की दिशा में केवल धर्म की ही नहीं बल्कि विज्ञान की बात साथ लेकर चले थे। धर्म की तरह विज्ञान भी सम्यग्दर्शन की साधना है, सम्यक्ज्ञान की आराधना है। दौलतरामजी छहढ़ाला में इसे ही 'वीतराग विज्ञान' कहते हैं। विज्ञान, विवेक और युक्ति को कभी छोड़ता नहीं और इसलिए अपने पथ से कभी अर्हत् वचन, जुलाई 99 31

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