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हैं वे सब पुद्गल की विभिन्न स्थल पर्यायें हैं। इन स्थूल पर्यायों का मूलभूत तत्व परमाणु है। 13
कर्मों की स्थिति अन्तर्मुहूर्त 48 मिनिट से लेकर 70 कोड़ा कोड़ी सागरोपम है। 14 जिस कर्म का जैसा नाम है उसी के अनुरूप फल प्राप्त होता है। पूर्वोपार्जित कर्मों का झड़ जाना ही निर्जरा है।
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कर्मों की जीव वैज्ञानिकता इस प्रकार से जीव के विभिन्न कार्य, गति, दशायें जैन कर्म सिद्धान्त के अनुसार कर्म परमाणुओं के द्वारा तथा जीव विज्ञान के अनुसार जीनों (Genes) के द्वारा निर्धारित होती है और मेरी सोच के अनुसार कर्म तथा जीन एक दूसरे से संबंधित / समान / समानान्तर / सहकारी है।
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पूर्वोपार्जित कर्मों के अनुसार प्रत्येक जीव को विभिन्न प्रकार का शरीर मिलता है। कर्म के हिसाब से किसी का आँखें नहीं हैं तो कोई मन्द बुद्धि का होता है। कोई छोटा होता है तो कोई बड़ा, कोई गोरा होता है तो कोई काला और यह सब कार्य जीन के द्वारा होता है। जीन के अनुरूप ही जीव की संरचना होती है तथा निश्चित जीनों के कारण ही पुरुष, स्त्री, नपुंसक लिंग का निर्माण होता है। अतः प्रत्येक जीव का पूरा भाग्य इन कर्मों और जीनों के अनुसार ही निर्धारित होता है।
एक तरह से कर्म का ही स्थूल रूप जीन मान सकते हैं तथा कार्माण वर्गणाओं (पुद्गल परमाणुओं) को जेनेटिक कोड के समकक्ष मान सकते हैं। जैनेटिक कोड के मूलभूत यौगिक शर्करा, फास्फेट और क्षारक भी अंतत: नाइट्रोजन, कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन आदि तत्वों से मिलकर बने हैं जो कि हमारे वातावरण में भी व्याप्त हैं। मेरे मत से अदृश्य पुद्गल कार्माण वर्गणाओं के अनुसार ही जीन की संरचना होती है।
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भौतिकी और कर्म जब जीव विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप करता है तो वह विभिन्न कर्म परमाणुओं को आकृष्ट करके अपने चारों ओर बांध लेता है। भौतिकी के एक सिद्धान्त के अनुसार समस्तं जड़ पदार्थ अपने वर्तमान के तापक्रम के अनुसार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें विकीर्ण करते हैं। जब कोई जीव किसी भी बाह्य वस्तु, जड़ या चेतन की तरफ उन्मुख होता है तो ये जीव अपनी कषाय व योग की तीव्रता मंदता के अनुसार अपनी क्लॉक आवृति को पदार्थ की आवृति के समान समायोजित करता है, ऐसी स्थिति को अनुनादी स्थिति कहते हैं। इस अनुनादी स्थिति में जीव एवं पुद्गल में उच्चतम शक्ति का आदान प्रदान होता हैं। जब दो आवृतियों वाली तरंगें किसी पदार्थ से गुजरती हैं तो पदार्थ में उसका प्रभाव होलोग्राम के रूप में अंकित हो जाता है। ठीक इसी प्रकार अपने राग द्वेष के अनुसार जीव की आत्मा पर पाजिटिव निगेटिव चार्ज के रूप में होलोग्राम अंकित हो जाता है। 16
आधुनिक विज्ञान भी अब शरीर के चारों ओर कुछ अत्यंत महीन अदृश्य कणों की उपस्थिति को मानने लगा है।
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जिस तरह से रेडियो एक्टिव तत्व लाखों, करोड़ों, अरबों वर्षों तक धीरे धीरे विभिन्न प्रकार के विकिरिणों को विकरित करते रहते हैं उसी प्रकार ये कर्म परमाणु भी विशिष्ट किरणें निकालते रहते होंगे । यहाँ ज्ञातव्य है कि जीन में परिवर्तन का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार के विकिरण हैं।
कर्म और जीन प्रत्येक जीव के समस्त गुण गुणसूत्रों के ऊपर जीनों के रूप में होते अर्हत् वचन, जुलाई 99
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