Book Title: Arhat Vachan 1999 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 25
________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 11, अंक - 3, जुलाई 99, 23 - 32 कालद्रव्य : जैन दर्शन और विज्ञान - कुमार अनेकान्त जैन* 985888peareranaaras मानव के मन में यह प्रश्न सदा से उठता आया है कि जहाँ वह रहता है, जो वह देखता है, जो वह सुनता है, वह कैसे बना? कहाँ बना? कब बना? क्यों बना? तथा किसने बनाया ? इन्हीं जिज्ञासाओं को शान्त करने के लिए मानव ने अनेकों यत्न किए और अपनी बुद्धि का विकास किया। इन्हीं यत्नों का फल है दर्शन और विज्ञान की उत्पत्ति। विश्व में कितने द्रव्य हैं ? किन - किन तत्वों से सृष्टि की रचना हुई है? इत्यादि प्रश्नों के समाधान प्राय: सभी दार्शनिकों वैज्ञानिकों ने अपने- अपने ज्ञान और सामर्थ्यानुसार दिये हैं। विश्व में जो कुछ भी घटना चक्र चल रहा है उसमें काल निमित्त माना जाता है। काल का अविरल गति से चलता चक्र सदैव ही मानव के लिए रहस्य और जिज्ञासा का विषय रहा है। अत: सृष्टि के आरंभ से ही काल की मानवीय जिज्ञासा और चिंतन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ___ काल का दार्शनिक एवं वैज्ञानिक विवेचन अपने आप में अनोखा है। सृष्टि के सभी घटनाचक्र इसी के इशारे पर नाचते हैं। इसके एक इंगित से जीवन मृत्यु में बदल जाता है और मृत्यु नव जन्म का सरंजाम जुटाने लगती है। काल के विषय में दार्शनिक दृष्टि भी महत्वपूर्ण है और वैज्ञानिक दृष्टि भी महत्वपूर्ण है। यद्यपि विज्ञान और दर्शन का लक्ष्य एक है तथापि उनमें काफी अन्तर है और यह अन्तर साधनों का है। जहाँ एक तरफ विज्ञान भौतिक साधनों एवं बौद्धिक शक्ति पर आधारित है वहीं दूसरी तरफ दर्शन अन्तर्ज्ञान की शक्ति पर आधारित है जिसे "Intutional Power" कहा जाता है। दर्शन की कसौटी तर्क है और विज्ञान की कसौटी प्रयोग। इस दृष्टि से हम यह भी कह सकते हैं कि विज्ञान और दर्शन में अन्तर होते हुए भी उनके लक्ष्य 'सत्य' की दृष्टि से समानता है। भारतीय दर्शनों में काल की पर्याप्त चर्चा है, जैन दर्शन में भी 'कालद्रव्य' की काफी विवेचना की गयी है। जैन दर्शन में काल का स्वरूप __जैन दर्शन के अनुसार यह विश्व छह द्रव्यों से मिलकर बना है - 1. जीव, 2. पुद्गल, 3. धर्म, 4. अधर्म, 5. आकाश, 6. काल। इन छह द्रव्यों में 'कालद्रव्य' को छोड़कर शेष सभी द्रव्यों के स्वरूप के विषय में प्राय: सभी जैनाचार्य एकमत हैं। 'कालद्रव्य' के विषय में मतभेद हैं और विभिन्न जैनाचार्य उसकी अलग - अलग व्याख्या करते हैं। 'काल' शब्द के विभिन्न अर्थ होते है किन्तु जैनदर्शन की द्रव्यमीमांसा के अनुसार यह अनस्तिकाय एक प्रदेशी द्रव्य है जिसकी सक्ष्मतम पर्याय 'समय' कहलाती है। अथवा अन्य शब्दों में 'समय' काल का अविभाज्य अंश है। सामान्य व्यवहार में जब समय कहा जाता है तब उसका अर्थ काल ही माना जाता हैं। * शोध छात्र, जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, जैन विश्व भारती संस्थान, लाड़-341306

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