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लिये सर्वप्रथम मादा के एक स्वस्थ अण्डाणु को काम में लिया जाता है। इस अण्डाणु में से विशेष तकनीक द्वारा केन्द्रक को अलग कर दिया जाता है तथा इस केन्द्रक या नाभिक विहीन कोशिका को एक सुरक्षित स्थान पर रख लिया जाता है। अब हमें जिस जीव का क्लोन तैयार करना है (जिसे डोनर पेरेन्ट कहते हैं) उसकी त्वचा (Skin) में से एक कोशिका अलग कर ली जाती है। फिर इस कोशिका के केन्द्रक ( नाभिक) को बड़ी सावधानीपूर्वक अलग कर लिया जाता है। इस केन्द्रक को पूर्व में सुरक्षित रखी केन्द्रक - विहीन - कोशिका में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार एक नई कोशिका पैदा हो जाती है जिसका केन्द्रक डोनर पेरेन्ट की कोशिका का केन्द्रक होता है। इस प्रकार इस नई कोशिका में गुणसूत्र वे ही होते हैं जो कि डोनर पेरेन्ट में होते हैं। यह नई कोशिका द्विगुणन द्वारा भ्रूण में परिवर्तित हो जाती है। इस भ्रूण को किसी भी मादा के गर्भाशय में स्थित कर दिया जाता है जहाँ वह सामान्य रूप से विकसित होने लगता
है। इस प्रकार जो नवजात पैदा होता है उसमें गुणसूत्र वे ही होते हैं जो कि डोनर - पेरेन्ट के होते हैं अतः इसकी शक्ल सूरत हूबहू डोनर पेरेन्ट जैसी ही होती है। यानि कि यह डोनर - पेरेन्ट की कापी ही होगा।
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इस प्रकार हम जिसकी प्रतिलिपि (कापी, क्लोन) तैयार करना चाहते हैं उसका केन्द्रक मादा के अण्डाणु में प्रतिस्थापित करना होगा। यदि हम नर का क्लोन तैयार करना चाहते हैं तो उसकी कोशिका का केन्द्रक और यदि मादा का क्लोन चाहते हैं तो मादा की कोशिका का केन्द्रक किसी मादा के अण्डाणु (कोशिका) में प्रतिस्थापित करना होगा।
क्लोनिंग से उठे सवाल
डॉली के रूप में भेड़ का क्लोन उपरोक्त विधि (तकनीक) द्वारा ही पैदा किया गया। लेकिन इस क्लोनिंग के सफल परीक्षण से कई दार्शनिक एवं धार्मिक कठिनाईयाँ सामने आई हैं जिनका स्पष्टीकरण अपेक्षित है।
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1. चूंकि क्लोन में आनुवांशिकी के हूबहू वे सारे गुण होते हैं जो कि डोनर पेरेन्ट के हैं, तो क्या क्लोन डोनर का ही एक अंश है ?
2. चूंकि क्लोनिंग द्वारा जीव पैदा होने की प्रक्रिया में नर तथा मादा दोनों का होना आवश्यक नहीं रह गया है, अतः बिना नर के भी स्तनधारी जीव पैदा कराया जा सकता है। तो क्या जैन धर्म में वर्णित गर्भ जन्म की अवधारणा गलत है ?
3. क्या क्लोन भेड़ (डॉली) सम्मूर्च्छन जीव है ?
4. क्या प्रयोगशाला में भी मनुष्य पैदा किया जा सकेगा ?
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अर्हत् वचन, जुलाई 99
5. जैन धर्मानुसार जीव के शरीर की रचना अंगोपांग नामकर्म के उदय से होती है, लेकिन क्लोनिंग की प्रक्रिया में शरीर की रचना हम मनचाहे ढ़ंग से बना सकते हैं। हम जिस किसी जीव की शक्ल तैयार करना चाहें, कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में जैन धर्म में वर्णित नाम कर्म की स्थिति क्या होगी ?
क्लोनिंग तथा कर्म सिद्धान्त
उपरोक्त प्रश्नों का हल प्राप्त करने के लिये हमें विषय का और अधिक विश्लेषण करना होगा तथा कर्म सिद्धान्त को भी समझना होगा।
सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर लेना चाहिये कि क्लोन किसी भी जीव का या डोनर -
- पेरेन्ट
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