Book Title: Aradhanasar Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan View full book textPage 7
________________ .१२. से रहित होकर शुद्ध बनता है। यद्यपि आराधना चार हैं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक चारित्र और सम्यक्तप, परन्तु तप आराधना सम्यक्चारित्र में गर्भित है। अथवा तप के द्वारा चारित्र में निर्मलता आती है, चारित्र वृद्धिंगत होता है अत: तप आराधना का पृथक् कथन किया है। इस बार प्रदान की आराधना मा भार है- शुद्धात्म तत्त्व की प्राप्ति । उसको प्राप्त करने के उपाय रूप , आराधनाओं का कथन देवसेन आचार्य ने आराधनासार में किया है। यह संसारी प्राणी तीन विषयवासना की तृष्णा से संतप्त होकर दुःखी हो रहा है। उन तृष्णाओं के संताप को दूर करने के लिए ये चार आराधना ही समर्थ हैं। शुद्धात्मतत्त्व की रुचि के प्रतिबन्धक दर्शनमोहनीय कर्म का विनाश सम्यग्दर्शन की आराधना से होता है और शुद्धात्मानुभूति लक्षण वीतराग चारित्र के प्रतिबन्धक राग-द्वेष रूप चारित्रमोह की नाशक चारित्र आराधना है। ये दो 'आराधनाएं ही आत्मविशुद्धि की कारण हैं। परन्तु ज्ञान एवं तत्त्व, अतत्त्व की पहिचान के बिना भी सम्यग्दर्शन और चारित्र की आराधना नहीं हो सकती। अत: ज्ञान आराधना भी आवश्यक है। तप से कर्मों की निर्जरा होती है, चारित्र में वृद्धि होती है इसलिए तप आराधना का कथन किया गया है। व्यवहार और परमार्थ के भेद से आराधना दो प्रकार की है। अभेद रूप कथन निश्चय नय कहलाता है और भेदरूप कथन को व्यवहार कहते हैं। व्यवहार नय से दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपरूप चार प्रकार की आराधना कही है, परन्तु निश्चय नय से संसार, शरीर और भोगों से विरक्त होकर शुद्धात्म स्वरूप में लीन होना ही आराधना है। आराधना. आराध्य. आराधक और आराधना का फल इनको जानकर ही मानव आराधना के सारभूत निश्चय शुद्धात्मा को जान सकता है। अत: इनको जानना बहुत आवश्यक है। देवसेन आचार्य ने आराधनासार नामक इस ग्रन्थ में इन चारों का विस्तारपूर्वक कथन किया है। आराधना - मन वचन काय से साध्य की सिद्धि का प्रयत्न करना आराधना है। राध, साध्, धातु सिद्धि अर्थ में है अत: जिसमें व जिसके द्वारा आत्मा की सिद्धि की जाती है, आराधना की जाती है उसे आराधना कहते हैं और आत्मा की सिद्धि अर्थात् स्वात्मोपलब्धि की प्राप्ति सम्धग्दर्शनादि चार आराधना से होती है, अत: इनको आराधना कहते हैं। आराध्य - निश्चय नय से इन आराधनाओं के द्वारा हमारी आत्मा ही आराध्य है, इसकी शुद्ध पर्याय साध्य है। निज आत्मा का अवलोकन (श्रद्धान). निज शुद्धात्मा का ज्ञान, स्वरूप में आचरण १. ईसणणाणचरित्तं तवाणमाराहाणा भणिया ॥२ ।। दुविहा पुण जिलजयणे भणिया आरहणा समासेन । सम्पत्तम्भि य पढभा बिंदिया च हवे चरित्तम्मि॥३|| भ.आ. पू.Page Navigation
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