Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 12
________________ ॥श्री वीतरागाय नमः॥ श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलाल बतिविरचितया अनुयोगचन्द्रिकाख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् श्री अनुयोगद्वारसूत्रम् (हितीयो भागः) अथ षष्ठं बीभत्सरसं सलक्षणं निरूपयति मूलम्-असुइकुणिमदुदंसणसंजोगब्भासगंधनिप्फण्णोनिवेयऽविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभच्छो॥१॥ बीभच्छो रसो जहा-असुइमलभरियनिज्झरसभाव दुग्गंधि सबकालंपि। धण्णा उ सरीरकलिं बहुमलकलसं विमुंचंति ॥२॥सू०.१७५॥. छाया-अशुचि कुणपदुदर्शनसंयोगाभ्यासगन्धनिष्पन्नः। निर्वेदाविहिंसा लक्षणः रसो भवति बीभत्सः॥१॥बीभत्सो रसो यथा-अशुचिमलभृतनिझर स्वभाव दुर्गन्धिं सर्वकालमपि । धन्यास्तु शरीरकलिं बहुमलकलुषं विमुञ्चन्ति॥२॥०१७५॥ दीका-'असुई' इत्यादि अशुचिकृणपदुर्दर्शनसंयोगाभ्यासगन्धनिष्पन्नः, तत्र-अशुचि भूत्रपुरीमादिकम् , कुणपाशवः, अपरमपि यद् दुर्दर्शन-गलल्लालादिकरालं शरीरादि, एतेषा __अथ सूत्रकार छठे वीभत्सरसर का लक्षण निर्देश पुरस्स कथन करते हैं-"असुइ कुणिम" इत्यादि । .. .. शब्दार्थ-(असुहकुणिमदुईसणसंजोगन्भासगंधनिष्फण्णो, निव्वे यऽविहिंसा लक्षणो रसो होह वीभच्छो)-यह वीभत्स रस मूत्र, पुरीष आदि अशुचिपदार्थों के, कुणप-शव के, तथा बहती हुई लार आदि से घृणित-शरीर आदि को पार २ देखने रूप अभ्यास से तथा उनकी गंध હવે સૂત્રકાર છઠ્ઠા બીભત્સરસના લક્ષણનું કથન કરે છે – " असुइ कुणिम" त्या Aval-(असुइकुणिमदुईसणसंजोगभानगंधनिष्फण्णो,निव्वेयऽविहिंसालकखणो रसो होइ बीभच्छो) मा भामरस २५ भूत्र, पुरीष बोई म પદાર્થો, કુણપ-શવ, તેમજ વહેતી લાળ વગેરેથી પંણિત શરીર વગેરે વારંવાર જોવાથી તેમજ તેમની દુધથી ઉત્પન્ન થાય છે. આ રસનું લક્ષણું ख०१

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