Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसन्धान-७८
अप्रगट पांच गुरुस्तोत्रो
- सं. गणि सुयशचन्द्रविजय
मुनि सुजसचन्द्रविजय
: : : :
हस्तप्रत उपर लखायेला विशाळ के लघु, संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंशभाषामय ग्रन्थरत्नोने एक बाजु मूकी दइए तो पण, हस्तप्रतोनां छूटा-छवाया प्राप्त थता पानाओमां पण आपणुं घणुं साहित्य छुपायेलुं छे । 'पार्नु फरे... सोनु खरे...' ए वात तेमां हरहमेश सत्य पुरवार थाय छे । तेमां प्राप्त साहित्यमां अप्रकाशित पण घणुं छे । परन्तु, ते माटे सतत ज्ञानभण्डारनां छूटा पत्रो फंफोसता रहेवां पडे... अस्तु ।
प्रस्तुत ५ कृतिओ पण अमने २ अलग-अलग फूटकल पत्रमाथी प्राप्त थई छे, जे नीचे मुजब छे । (१) श्रीदीप्तिसागरसूरियशःस्तवः - (२) श्रीदीप्तिसागरसूरिगुरुराजवर्णनम् - (३) श्रीविजयप्रभसूरिस्तुतिकाव्यानि (४) श्रीगुरुस्तुति (५) श्रीविजयसिंहसूरिस्तुतिकाव्यानि - श्लो. १०
आम जोइए तो आ पांचे कृतिओ सामान्य(सहज)गुणस्तवनामय छे; तेमां कोइपण गुरुभगवंत सम्बन्धी कोइपण ऐतिहासिक बाबतो आलेखायेली नथी । छतांय विविध छन्दोनो प्रयोग अने काव्यनी रसाळता कवि प्रत्ये आदर उपजावे तेवा छ । कृतिओ एकंदरे शुद्ध अने भावपूर्ण छ ।
कृतिकारे जेमनी स्तवना करी छे तेमां वि. प्रभसूरिजी अने वि. सिंहसूरिजी तो जगप्रसिद्ध छे । ज्यारे 'दीप्तिसागरसूरि' अप्रसिद्ध छ । कृतिमांथी के अन्य कोइ सन्दर्भसाहित्यमांथी तेमना जीवन-कार्यकाळ वगेरे कोइ विगत अमने प्राप्त थई नथी। तेज रीते कृतिकार अंगे पण कोइ नोंध प्राप्त थई नथी ।
संशोधनार्थे प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत मेळवी आपवा बदल - 'श्रीनेमिविज्ञान-कस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर (सुरत)'ना कार्यवाहकोनो खूब खूब आभार ।

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98