Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
४६
अनुसन्धान-७८
धर्मलाभ दीधो जसि, कहि हसी गणिका ताम अरथलाभ इंहां जोईजइ, सुणि मुनिवर गुणधाम ॥३॥ लबधिवंत लटकि करी, ते पणि बोलइ एम अरथलाभ ताहरि हुयो, मनवंछित फल जेम ॥४॥ उक्तं हि - महानिसीथे, षष्ठाध्ययने;
धम्मलाभ(भं) जा भणइ, अत्थलाभं विमग्गीओ
तेणावि लद्धिजुत्तेण(णं), एवं भवओ तिअं(त्ति) भाणि ॥१॥ एम कहितां सोवनतणी, साढी बारह कोडि वृष्टि थई तेहनइं घरिं, कुण करइ तपनी होडि ॥५॥ उपदेशमालनी वृत्तिमां, तरणुं ताण्युं तेण . ऋषिमंडलनी वृत्तिमां, एम संबंध को एम ॥६॥ महानीसीथ सूत्रई कही, वचन थकी वसुधार ग्रंथ ग्रंथ इम फेर छे, वृष्टितणई अधिकार ॥७॥ जूळू साचुं किम कहूं, विसंवाद जे थाइ ते तो जाणई केवली, हुं नवि जाणुं काई (कांइ) ॥८॥ जिणइ ग्रंथइ जे जिम कहिउं, ते तिम आणुं आंहिं एहमां दोस को माहरो, मत आणो मनमांहिं ।।९।।
[ढाल-८] राग - मारु, थारि माथई पचरंग पाग सोनानो छोगलो मारूजी - ए देशी । मुनि वलवा लागो जाम, आगलि आडी फरि वारूजी लेई जावोजी सोवन स्वामि, गाडी उंटे भरि ॥१॥ वा० मे तु न ल्यां अणहक एक दाम, किणिरू दोकडो, वा० थे तु किउ ढिग आईण ठामि, कंचणरो रोकडो ॥२॥ वा० मे तु नाटिक गीत विनोद, विविधपरिस्युं करी, वा० म्हें तु पुरुषंनइं द्यां परमोद, तनि करि चाकरी ॥३॥ वा०
४९. गणिका - अ। ५०. न - अ।
५१. मारे गेह - अ, आणि - उ ।

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98