Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 58
________________ ओक्टोबर - २०१९ दूहा तव दूरमूख सोनी कहि, आपि रह्यो तुं मुंझि; साहामानि तुं सीख दि, बुझि बुझि रे बुझि ॥१॥ मगन थई रहिल महुलमि, महिला गणिका साथि धरम कल्पतरु वेचिनई, कां दिइ बाउल बाथि ॥२॥ त्रीजइ पहुरिं तारुणी, आवी प्रिउनि पासि भूख त्रिषा पीडी घणुं, बोलि वदन विकासि ॥३॥ उठोजी उठो हविं, मूंको एहनी केडि आज थया दसमा तुम्हे, कंतजी करो निमेड ॥४॥ [ढाल-११] राग - केदारु, करेलनां घडि दि रे - ए देशी । नंदिषेण चिति चितवई, साच कह्यो सो नारि आप दरिद्रि उरकुं, किंउं करइ दोलतिदार २ ॥१॥ मुंकिजइ अब मोहनि रे, कामिनी फल किंपाक, मुं० विषमा विषय विपाक, मुं० आंकणी ॥ धिग् धिग् धिग् ए काम कुं, धरम छोड्यो धीठ दुनियामि दुरजन अइओ, दूजो कोई न दीठ ॥२॥ मुं० मई घरवास भजि धर्यो, अमृतमई विष बिंद किउं छुटउंगो कुकर्मथि, इउं करइ आतमनिंद ॥३॥ मुं० कों न अकारय मीं कीओ, कंपइ थर थर काय रयण यतीध्रम हारीओ, हाय हाय हाय हाय ॥४॥ मुं० दे डुबकी गहरइ जलिं, तारे ढूंढि तोय सायरम सूई गडि, किउं पावीजइ सोय ॥५॥ मुं० तिउं ललनांकी लालचिं, खोहिउ सुंदर सील अब संसार समुद (द्र)को, किउं तरि लहुंगउ तीर ॥६॥ मुं० ७२. दातार - ड । ७३. तजी लीओ - अ। ७४. करि - क।

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