Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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५८
अनुसन्धान-७८
थया निर्मम निरहंकारी, करि जे तप नीरस आहारी । संनिधिनइं संचय वारी, थया कूखीशंबलधारी हो साधु ॥३॥ वि० । देहिं मइल रोमावलि धारइं, जाणि दोय गरहरणां ए माहरि । नारीनी संगति वारि, सोय आप तरइ पर तारइ हो साधु ॥४॥ वि० । धारइं वस्त्र धउला तेह, जीरण नि मइलां तेह । वली नवि सोभावि देह, रहई निसदिन समता गेहिं (गेह) हो साधु ॥५॥ वि० । एक लेई वासलि छेदि, उपसरग करि एक वंदि । चरचि एक चंदन बिंदि, एकइनई स्तवइ यन नं(नि)दि हो साधु ॥६॥ वि० । परीग्रह एक कउडी न राखइ, वली सत्य वचन मुखि भाखइ । भूचियां मुखि५ सचित न चाखंइ, सहइ परिसह पणि व्रत राखइ हो साधु ।।७॥ वि० । इम रहितां समता भावि, ऋषि घातीकरम खपावं । शुभ ध्यानि केवल पावि, सुर कनकनई कमलि ठावि हो साधु ॥८॥ वि० ॥ करि आगलि नाटक देवा, सारइ कर जोडी सेवा । भवसंचित पाप हरेवा, समकितनु लाभ९८ लहेवा हो साधु ॥९॥ वि० ॥ न्यानसागर कहि नरनारि, सुणो ढाल पनरमी सारी । एह तो नावा सुखकारी, देसि भवजलधि उतारी हो साधु ॥१०॥ वि० ॥ दूहा नंदिषेण ऋषि केवली, विचरी उग्रविहारि ।
अंतइ अणसण लेयनिं, वरिया मुगति वरनारि ||१|| अजरामर पाम्या तुह्मे, ज्योतिरूप जगदीस । देयो परमाणंद प्रभू, आणंदी निशिदीस ॥२॥
[ढाल-१६ राग - धन्यासी । दीर्छ दीर्छ रे वामाको नंदन दीठो । ए देशी ॥ अक्षर एक जे सूत्रनो जाणि, पडिबोहि भविवंद ।। सुणि गोयम नंदिषेणतणी परिं, ते लहि आणंद कंद रे ॥१॥
भवि सूत्र भणो मनरंगि ॥ करमतणां दल कापई आपे, अविहड सुख एकांगि रे ॥२॥ भवि० ॥ ९४. भूख चिता मनमां न राखइ - अ. । भूख्या - ब-क-ड ॥ ९५. वनि - ब - ड । वन - क॥ ९६. चावै - ब। ९७. घणघातीकरम - अ॥
९८. भाव - ड। ९९. जीपई - अ ॥

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