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ओक्टोबर - २०१९
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आगि नहीं पण सहू को खाय, तो स्युं अनफल ? अन नहीं फल नहीं, कवि गद कहि रे विचक्षणो एह जो अर्थ विरलो लहइ रे. [लवण] ५ चंद्र तणइ आकारि नयनइं हरख धरंति, हव्यणापुर उप्पन्न अगि सेज्य पोढंति; विहुं अक्षर जसु नाम, मानवनां मन मोहेति पतिव्रता नहीं ते पंथीजन साथि चलंति नर-नारी मन वल्लही पुन्यवंत स्यूं रमइ अपार, ता विण सुख न उपजइ सूरता लहो विचार. [अंगाकरी] ६ एक नारी नीरमाहि बुडी, तरस कारणि पाडोसिणि कुटी, सावइं(?) नारी पुकारि, किस कारणि मो बंभण मारि, मारुं नहि तो रूसइ राय, सुरता हुइ सो समझाय.[घडीआलु] ७ एकणि मंदिर रहि नारी-नर. कदी न दीठो नर नहि दीठी नारि, सदा वंजइ सुनुठो(?) नित्य आवइ नित्य जाइ, पिंड न प्राण न चक्षु-चलण, मही ऊपरि अछइं अमर, सतरसलराय (?) सुणि वीनति, कवण सा नारी, कवण नर ?
[रात-दिवस] ८ दही नहीं पणि दहियावन्नो मछ नहीं पणि जल उप्पन्नो, चोर नहीं पणि बांध्या लीजइ, पुत्र नहीं पण कोको दीजइ.
[संख] ९ बाप-बेटो एक ज नाम, बेटो हीडइ गामोगाम, बेटा पेट ऊपनी बाली, कहो पंडित तुम्हे हरिआली.[आंबो] १० बापे जायो बेटडो, बेटीइ जायो बाप; कहो पंडिता, धर्म के पाप ?
[आंबो] ११ प्रथम अक्षर विण पातसाह घर सोहे, मध्य अक्षर विण घर घर डोले;