Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 89
________________ अनुसन्धान-७८ खूब मन्थन कर्यु. नेमिसूरि महाराज साथे मोकळे मने आनी चर्चा पण करी. महाराजे खूब समजाव्या के आवं न विचारो, बधी वातना खुलासा होय, उपाय-उकेल होय. तमारे कांई छोडवानुं नथी. आ लोकोए अविवेकी वर्तन दाखव्युं छे. पण तेथी तमारे 'जैन' मटी न जवाय. शेठने गळे आ न ऊतयं. महिनाओना मनोमन्थन पछी एक सवारे तेओ साबरमती नदीना पटमां गया. कलाको सुधी विचारो कर्या. छेवटे अन्तरात्मानो अवाज के 'जे सिद्धान्तने हुं पूरा विश्वासथी मानवा तैयार न होउं तेना सभ्य रहेवानो मने कोई हक नथी' - ए प्रमाणे तेमणे 'जैन' तरीके राजीनामुं लख्यु. ते राजीनामानो असल पत्र आ साथे छाप्यो छे. ते पछी संघ-समाजमां भारे ऊहापोह थाय ते स्वाभाविक छे. अनेक तीर्थो वगेरेना प्रश्नोमां बुद्धि, बल, वग, धन इत्यादिनो सतत भोग आपनार महाजन, अमुक नकारात्मक लोकोनी अणछाजती हरकतोने कारणे, संघनो अने धर्मनो त्याग करे ए कोण बरदास्त करे ? संघमां थयेला ऊहापोहनी असर राजीनामाना पत्र पछी ते उपर विचार करवा मळेला संघे करेला ठरावमां जोवाजाणवा मळे छे. ते ठराव पण आ साथे छे. जो आ ठराव न थयो होत, संघे राजीनामुं पार्छ खेंचाव्युं होत तो साराभाई परिवार जैन परिवार होत; तो विक्रम साराभाई सहित तमाम परिवार जैन रह्या होत. जोके जे लोकोए पोताना मान-महत्त्व पामवा-वधारवा माटे विरोध करेलो, ते लोको तो, शिक्षात्मक पगलांथी बची गया पछी, पोते महान धर्मकार्य कर्यु, जीती गया, अहिंसानो ध्वज फरकाव्यो, पोते न होत तो महा-अनर्थ थात, आवी आवी वार्ताओ रचतां अने लखतां रह्या छे. ए पण विषम कलियुगनी बलिहारी छे. वर्षोथी अंधारामां दटायेलो इतिहास, वारंवार अवळी रीते रजू थतो रहे छे, अने मुग्ध लोको तेने ज साचो मानी ले छे, त्यारे बनेली घटनानो यथातथ इतिहास प्रस्तुत करवो ए आवश्यक जणाय छे.

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