Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ओक्टोबर - २०१९
७१
बि सहस जास पलोयणा, सहसो एक फणाई, सखी सवाणी वीनवइ, तउं तास वरन्नी कांइ. १६ छप्पा वाहण वाहणेण मंडण भखण सुएण;
जिम दुइ-पंचा सिर नयर, तिम हुँ किद्ध प्रियेण. १७ (भ्रमर-कमल-महेश-सर्प-पवन-हणवंत-दशसिर रावण - लंकाने बाळी, तेम मने बाळी.)
गिरिस् कंत आभरणे, तसु भख अंगि म लाउ, अंबुह अलविहि जो चवइ तसुजं -- उ मिलाउ. १८ गिरिपुत्ति कंताह स, तस वाहणची नारि;
कामकं-सण जिहि तिहां सा जीवु री संसारि. १९ (पार्वती-महादेव-कार्तिकेय-मोर-ढेलि-ढील) (?)
अख ग्रह अंतरि जो वसइ तस वइरी वइरेण;
तसु स्वामी अरि कारणइ, खरी संताई तेण. २० (चंद्र-वादल-पाणी-पवन-सर्प-महादेव-कंदर्प)
श्रीपति सू अरिमंडणउ भोयण नंदण नाह;
तसु अरि बंधव लही, तसु उपरि ऊछाह. २१ (कृष्ण-कंदर्प-महादेव-सर्प-पवन-हनुमान-रामचंद्र-रावण-कुंभकर्ण-नींद)
सायर सू सारिखावदनी, घणरिपुवाहण अछइ नयंनी; कासव सू तसु रिपु रिपु वाहण,
सीस सूआ सू धण लागी चाहण. २२ (सागर सुत चंद्र. मेघ-पवन-मृग. सूर्य-राहु-दान-हस्त-आंगुली-नख)
वि-सू मंदिर सारवइ, जे तूं घत्तइ मुझ;
तउ इंद्रावाहण तसु डसण हूं पहिरावउं तुझ. २३ (रावण-वायु. गज-दंत (चूडो).

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