Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 60
________________ ओक्टोबर - २०१९ [ ढाल-१२] राग - काफी, वीर विघनहर खेतला - ए देशी ॥ प्रथिवी भूषण पुरवरिं, हतो मुखप्रीय ब्राह्मण एक हो सहसविप्र सो दिन प्रति, जिमाडे मिथ्या विवेकि हो ॥१॥ दउलति दाई दीजीई, सुणि गोअम जिणि विधि दान हो लहिइ तेणि विधि संपदा, छई दान ते भोगनुं थान हो ॥२॥ द० ॥ दासी सूत एक भीमडो, तेहनि मिल्यु तेणी वार हो । ते कहि काम हुं ताहरूं करूं, जां करि जमणवार हो ॥३॥ द० ॥ वाडव सहस जीम्या पछ, जे वाधइ ताहरइ अन्न हो । जो ते दे तुं मुंहनि, मसगतिनुं फल एक मन्न हो ॥४॥ द० ॥ तेणि पणि इम अनुमनिउं, ते आपिस अन हुं तुझ हो । मन मूकीनि भीमडा, जो काम करेस तुं मुझ हो ॥५॥ द० ॥ वासण मांजी वेगि तुं, पूंजी मही करजे पवीत्त हो । चोकु देई चतुर तुं, जल इंधण अरपे झत्ति हो ॥६॥ द० ॥ आणि मूंकि अनुदनि, कढाईयां चरु नि थाल हो । पुरमां पुर बाहिर यति, जिहां होवि तिहां आवइ भालि हो ॥७॥ द० ॥ पहुर रहि तव पाछिलि, तव परवारि ते भीम हो । जिहां होवि मुणि साहुणि, तिहां जई वंदि कहि ईम हो ॥८॥ द० ॥ उन्हांजल अणगारजी, वली एषणीक छई आहार हो । जोईइ ते आवी लीओ, देवानइं देह आधार हो ॥९॥ द० ॥ आमंत्री इम साधुनि, पडिलाभई पोति हाथि हो । जनम कृतारथ मानतो, कहि तुठा श्री जंगनाथ हो ॥१०॥ द० ॥ जावजीव अणगारनि, देई इम दान सुपात्रि हो । भोगकरम बांधी घणं, चवी देव थयो सुभगात्रि हो ॥११॥ द० ॥ सुरनी संपदा भोगवी, दासी सुत भीमनो जीव हो । नंदिषेण ए अवतरिओ, सोभागी सुभग अतीव हो ॥१२॥ द० ॥ ७८. दांन - अ। ७९. कत्ति - अ। ८०. दिन - अ-क. ॥

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