Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
ओक्टोबर - २०१९
४७
पछि ल्यांजी फूलनि पान, म्हे तु गणिका गुणी, वा० साहिबजी आणो सान, थे तु ग्यानी मुंणी ॥४॥ वा० करि तन-मन-नयन विलास, कटाक्ष ते कामिनी, वा० कला चोसद्विरो आवास, गोरी गजगामिनी ॥५॥ वा० आणी लहकती आगलि वेणि, वामा जसी वीजली, वा० मुखि जीत्यो निशापति जेण, वाणी मिसरी गली ॥६॥ वा० करशुं कर झाली तेह३, कहि रिषजी सुणो, वा० नहिं जावा दिउं गुणगेह, लीओ धन आपणो ॥७॥ वा० सोभागी मि सुरताण, मुंकी मन चणेचणो, वा० नायकजी चतुर सुजाण, लीओ रस अम्हतणो ॥८॥ वा० वरतुल घट सम उत्तग, पयोहर पीनस्युं, वा० आलिंग्यो गाढ सुरंग, मयणरस लीनस्युं ॥९॥ वा०
यदुक्तं - महानिशीथे, उत्तंग घोर घणवट्टा, गणिआ आलिंगिउं दड़े भद्दे कि जासि मं दविणं, अविहिए दाउ चुल्लगा ॥१०॥ एक नकरी बारह कोडि, ईहा रही विलसीजइ, वा० कहि कमलसेना करजोडि, ए काम किओ अलसीजइ ॥११॥ वा० लही मनमां भाविभोग, निकाचित जे कहिओ, वा० सो आय मिल्यो संयोग, विमासी तिहां रहिओ ॥१२॥ वा० दिन प्रति दस नर प्रतिबूधि, पछि जीमवू सही, वा० ए नेम करि मनसुद्धि, पइठो मंदिर वही ॥१३॥ वा० मारू रागि रसाल, न्यानसागर भली, वा० । एह तो कही आठमी ढाल, सरस छि सोहिली ॥१४॥ वा०
- सोरठी - । दूहा ॥ रहिओ गणिकानइं गेह, सूत्र अरथ संभारतो
नंदिषेण अति नेह, श्रावकनां व्रत धारतो ॥१॥
५२. गुणी - अ। ५४. सुलतान - अ-क।
५३. नारि - अ । ५५. सणसणो - अ ।

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98