Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७८
सागरमत छत्रीसीनी चडपई
- सं. गणि सुयशचन्द्रविजय
मुनि सुजसचन्द्रविजय उपाध्याय धर्मसागरजी म. तथा तेमना ३६ बोल - पूर्वभूमिका तथा परिचय
उपाध्याय धर्मसागरजी गणि १७मी सदीना प्रकाण्ड विद्वान, वादी तथा समर्थ ग्रन्थकार हता. तेओ तपागच्छनी परम्पराने ज जिनशासननी शुद्ध परम्परा मानता. अने तेथी ज तेमणे "उत्सूत्रकन्दकुद्दाल" ग्रन्थना आधारे पोताना नवा रचेला "औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक" तथा "तत्त्वतरङ्गिणी" (सटीक) ए बन्ने ग्रन्थोमां अन्य गच्छोनी आकरी समालोचना करी हती. आ ग्रन्थोने कारणे तत्कालीन जैनसमाजमां घणो खळभळाट थयो. वळी तेना फळस्वरूपे विजयदानसूरिजीनी अध्यक्षतामां थयेल सम्मेलनमा उपाध्याय धर्मसागरजीने स्वप्ररूपणा बाबत ७ बोलना पट्टक पर "मिच्छा मि दुक्कडं" लखी आपवा पड्या हता.
जो के ते पछी पण उपाध्यायजीए स्वमतनी प्ररूपणा शरु ज राखी जेने माटे पण तेमने एक वार १२ बोलना पट्टक पर तथा बीजीवार ५ बोलना पट्टक पर मिच्छामि दुक्कडं लखी आपवा पड्या हता. आम आटलुं बधुं बन्या पछी पण तेओ पोतानी प्ररूपणाओने ते ज रीते वळगी रह्या. अरे एटले सुधी के त्यारपछी सं. १६५०मां फरी तेमणे पोताना मतनी प्ररूपणाओने रजू करतो "सर्वज्ञ शतक" नामनो ग्रन्थ पण रच्यो.
सं. १६५३-५४ आसपास उपाध्यायजीनो काळधर्म थतां तेमना मतना रागी पं. नेमविजयजी, पं. भक्तिसागरजी, पं. मुक्तिसागरजी जेवा विद्वानोए सागरमतनी प्ररूपणाने ३६ बोलनुं स्वरूप आपी पोते रचेला "प्ररूपणाविचार, १८ प्रश्नो, केवलीस्वरूप सज्झाय" वगेरे ग्रन्थोमां सागरमतनी प्ररूपणाने पुष्टि आपी. तो बीजी बाजु उपाध्यायजीना मतने खोटो माननारो पण एक वर्ग हतो. जेमां महोपाध्याय सोमविजयजी, महोपाध्याय यशोविजयजी, कवि ऋषभदासजी जेवा विद्वान पुरुषोए स्वरचित छत्रीस बोल स्वरूप, षट्त्रिंशज्जल्प (सटीक), प्रतिमाशतक (सटीक), बारबोल रासादि स्वतन्त्र ग्रन्थोमां तथा कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका जेवा ग्रन्थोना अवान्तर विषयोमा उपाध्यायजी म.ना मतनुं शास्त्रपाठ आपी खण्डन कर्यु. आम बन्ने पक्ष पोतपोताना मतने सिद्ध करवाना प्रयत्नो करता रहेता.

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