Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
३४
अनुसन्धान-७८
छे जे नोंध्या नथी, क्यांक पंक्ति छूटी गई छे ते नोंधी नथी, परन्तु अ प्रतिमां बीजी जे अलग गाथा छे तेने बना चिह्न वच्चे मूकीने वाचनामां मूकी छे. मूळ प्रतमा कोइक शब्द पर हरताल लगावी शब्द बदलेल छे, ह्रस्व-दीर्घ पण बदलेल छे, परन्तु हरताल नीचे जे शब्द देखाय छे ते बाकीनी चारे प्रतमां छे. दा.त. ढाळ-१० - दूहा - गाथा-१मां ‘पणि नवि बूझइ सोय' चरणमां मूळ प्रतमां 'समझें' शब्द पर हरताल लगावी बाजुमां 'बुझइ' शब्द लखेल छे, अने बाकीनी चारे प्रतमां 'समझें' शब्द छे, आq ज्यां छे त्यां
मूळ प्रतनो पाठ राखी चारे प्रतनो शब्द-पाठभेद तरीके नोध्यो छे. * → - आ चिह्न वच्चेनो पाठ ब प्रतनो समजवो. * खोटा लागता पाठने सुधारीने बाजुमां ( )मां मूकेल छे, प्राये-पांचमांथी
एकाद प्रतिमां साचो पाठ मलतां एने पाठभेदमां न जवा देतां (· ) करीने
आ रीते ज लखी दीधो छे. कथासार :
परमात्मा महावीरनी देशना सांभळी वैरागी बनेलो, श्रेणिक-धारिणी - पुत्र नन्दिषेण ५०० रमणीनो त्याग करी दीक्षा लेवा तत्पर बने छे. त्यारे देववाणी द्वारा एने अटकाववा प्रयत्न थाय छे. परन्तु तीव्र वैरागी नन्दिषेण प्रभु वीर पासे दीक्षा ले छे. १० पूर्वधर थाय छे. उग्र तप करे छे. उत्तम चारित्र पाळे छे, अने पूर्वना निकाचित भोगकर्मनो उदय थतां गणिकाने घरे पहोंचे छे. वली १२ वर्षे निकाचित भोगकर्म पूर्ण थतां निमित्त पामी त्यांथी पाछो फरी प्रभु वीरना शरणे जइ दीक्षा स्वीकारे छे त्यारे श्री इन्द्रभूति (गौतम गणधर) प्रभुने पूछे छे के तीव्र वैरागी - दश पूर्वधर नन्दिषेण चारित्र मूकी गणिकाने त्यां केम रह्या ? क्यारे । कया पूर्वभवमा एमणे निकाचित भोगकर्म - तप के दान द्वारा बांध्यु हतुं ? ए प्रश्नना उत्तररूपे प्रभु महावीर नन्दिषेणना पूर्वभवनी वात करे छे.

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98