Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ ओक्टोबर - २०१९ २९ केवलि प्रमुख कयां पंच बोल, मिछा-दुक्कड देई निटोल'२, तेह जि बोल ऊथापी करी, ग्रंथ रच्यो मनि मत्सर५३ धरी. १०८ सन्निपातिओ बोलइ जिसिउं, ग्रंथमाहिं पणि बोलिउं तिसिउं, स्व-परपक्षीनई बहु गालि(ल), ज्ञान गर्व बहू निंदा ढाल. १०९ तास पख्य वलि(ली) लीधउ जेणि, अनंत संसार वधारिओ तेणि, अमारि हण्यानुं पातक लीध, जेणि ए सागरनुं मत कीध. ११० उपशम-सार श्रमणगुण धरउ, निंदा विकथा दूरई करु(रउ), श्रीजिनवरनी मानउ आण, जिम शिवसुख पामउ निरवाणि(ण). १११ श्रीहिरविजयसूरीसर-सीस, श्रीविजयसेनसूरी(रि) महा मुनीस, तस पटि उदयो अविचल भाण, श्रीविजयतिल[क]सूरि संप्रति जाणि(ण). ११२ साहि सलेम दत्त अभिराम, जाहागीर विजयतिलक गुरु नाम, उपशम-सार सुधारस भरिओ, सोहइ चउविह संघ परिवरिओ. ११३ सागरमतनइं विषइ अगस्ति, कुमततिमिर-वारणइं-गभस्ति५, तस- गणधरवर वाचकराज, सोभायमान जेणि कीधां काज. ११४ सोमविजय वर वाचक जेणि, तपगछि सोह चडावि(वी)ओ तेणि, सागरमत-कंसासुर-कान्ह, टालिओ तेह तणओ अभिमान. ११५ सकल शास्त्र नय जाणई वली, जाणई संप्रति श्रुतकेवली, बोल छत्रीसे संग्रह करइ, भविक जीवना संसय हरइ. ११६ संवत सोल वर्ष चउंओतरइ(१६७४), महा सुदि पंचमि रवि वासरइ, श्रीकल्याणविजय उवझाय, पामी तेह तणओ सुपसाय. ११७ पंडित जयविजय इंम भणइं, सूधूं समकित तेहनुं गणई, सुद्ध परूपइ निंदा तिजइ, तेहनी सेवा सुर नर भजइ. ११८ धिन नर नारी तेह सुजाण, सुद्ध परूपक पालइ आण, श्रीजिनवचन आराधइ जेह, अविचल पदवी पामई तेह. ११९ ॥ इति सागरमत बोल छत्रीसनी चउपई सम्पूर्णाः ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98