Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 33
________________ २६ अनुसन्धान-७८ आवश्यक सूत्र वृत्ति विचारि, ऋषभदेव चरित्र अणुसारि, नमि विनमी(मि) जिन भगता दोइ, श्रीधरणेंद्र प्रसन्न थई जोइ. ६६ सहस अठतालीस विद्या दीध, तेहना सकल मनोरथ सिद्ध, जे कहइ विद्या अठतालीस, तेहनइ तु पुहुचे जगदीश. ६७ बोल-१९ भगवति(ती) सूत्र वृत्ति विख्यात, पन्नवणा उपांगई वात, श्रीजीवाभिगम उपांग, तत्त्वारथ वृत्ति भाष्य सुचंग. ६८ इत्यादिक वली ग्रंथ प्रयोग, पृथ्वी सात आठ कहइ लोग, पणि तेणि केणि अधिक न थाइ, ओछी पणि ते नवि कहिवाय. ६९ विमान सर्वनइं आधारभूत, पृथ्वी एक हुइ अदभूत, प्रतर प्रतर दीठ पृथ्वी कहइ, आगम परमारथ ते नवि लहइ. ७० बोल-२० पंचासकसूत्र वृत्ति पवित्र, ललित विस्तरा वचन सविस्त्र३०, इत्यादिक ग्रंथ भणई विवेक, अनुमोदना प्रसंसा एक. ७१ सागर अरथ करइ जूजूआ, उत्सूत्र भाषता माहूर हुआ, पूर्वाचार्यनइं लोपइ वली, तेहनइं सदगति गई वेगली. ७२ बोल-२१ महानिशीथ दूसमदंडिका, प्रश्नोत्तर संग्रह गंडिको, सर्वे ग्रंथ तणइं अणुसारि, भरत खेत्र छइ देस अपार. ७३ जे आपणई अगोचरि देस, तिहां बोल्यो छइ साधु सुवेस, सागर कहइ एक तपगच्छ विना, साधु तणी नहीं संभावना. ७४ बोल-२२ उपदेस-माल वृत्ति अनुमान, परपक्षी धर्मानुष्ठान, थोडूं(९) होइ आगम तडोवडइ३३, घणुं अज्ञान कष्टमां पडइ. ७५ अकामनिर्जरा पणि नवि कोइ, अज्ञान कष्ट म कहिजो सोइ, उभय अर्थ सागर नवि कहइ, तओ सिउं ऊठि बइसि सद्दहइ. ७६ बोल-२३ भगवतीइं चउ-भंगी कही, भविक जीवनइं काजइं सही, सीलसंपन्ने नो सुतसंपन्न, एहनो अर्थ सागर कहइ भिन्न. ७७ बोल-२४ योगबिंदु वृत्ति अणुसारि, लौकिक मिथ्यामति अति भारि, लोकोत्तर मिथ्यामती(ति) जेह, हलुकर्मा बोल्या छइ तेह. ७८ लौकिक जे वली मिथ्यामती(ति), लोकोत्तर भारे तेह थकी, जे कुमती(ति)शेखर इंम भण, एहनइं कुण पंडितमां गणइं. ७९ बोल-२५

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