Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 31
________________ अनुसन्धान-७८ श्रीविचारामृतसंग्रहइ, श्राद्धविधि-विनिश्चि(श्च)य कहइ, श्राद्धविधि पणि सूधू भणइ, काल-सत्यरी४ मानो घणइ. ३९ दुसम-दंडिका तणी अवचूरि, भरहेसर-बाहुबलिवृत्ति पूरि, दीवाली कल्प कीजीइ, संदेह-वि[षौ]षधि लीजीइ. ४० कीजइ चउवीस प्रबंध विचार, इत्यादिक ग्रंथ अणुसारि, वीर थकी नवसई त्राणुंइ (९९३), कालिक चउथि पजूसण भणइं. ४१ तेणई समइ जे हुआ सूरीस, मानिउं तेणई नामी सीस, सागर कहइ च्यारसई त्रिहिपनइं (४५३), चउथि पजूसण आणिउं गणइ. ४२ अणघडतुं जे बोलइ वचन्न, ते ऊपरि किम मानइं मन्न, डाहा नर विचारी जूइ, देखी पेखी न पडइ कूइ२५ ४३ बोल-८ पंचासक सूत्र वृत्ति भली, उपदेश रत्नाकर वृत्ति वली, प्रमुख ग्रंथ तणइं अणुसारि, श्रावकनई बोल्यां जयकार. ४४ द्रव्यस्तव भावस्तव दोइ, जेणइ करी परमपद होइ, भावस्तव श्रावकनइं नहीं, एह परूपणा सागरि कही. ४५ बोल-९ । भरतेश्वर मरुदेवी मात, एलाचीपुत्र जूउ विख्यात, इत्यादिक गृहवासि वसंत, भावस्तवि पाम्या भव-अंत. ४६ श्राद्धविधिनइं गुर्वावली, आरंभसिद्धिनुं वार्तिक वली, क्रियारत्न-समुच्चय भणउ, गच्छाचार पइन्नइ सुणउ. ४७ ग्रंथ-पंच प्रशस्ति अणुसारि, ज्ञानसागरसूरि गणधार. श्रीकुलमंडणसूरीसरू(रु), ज्ञानगुणे जाणइं सुरगुरु. ४८ घणा ग्रंथ वली जोया मथी२६, तपगछपट्टमाहिं ए नथी, सागर संप्रति पटमां गण, बासट्ठिमां श्रीविजयदेव भणइ. ४९ बोल-१० वडी वृत्ति आवश्यक तणी, विशेषावश्यक वृत्ति भणी, श्रीठाणांग वृत्ति विख्यात, देश-विसंवादी निह्नव सात. ५० सर्व-विसंवादी निह्नव एक, निह्नव आठ बोल्या सुविवेक, पूनमियादिक निह्नव कहइ, ते कुण गुरुपरंपर लहइ. ५१ बोल-११ राजप्रश्नीयनी वृत्ति मझारि, ऊर्ध्व लोकि जिनप्रतिमा सार, पंच धनुःशत केरुं मान, संघाचार वृत्ति अनुमानि. ५२

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