Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ओक्टोबर - २०१९
सागरमत बोल छत्रीसनी चउपई ।। ६० ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ ढाल-चउपईनो || विजयाचिंतामणि प्रणमी पाय, पामी सरसति तणउ पसाय, अग्यारमा मत बोल छत्रीस, सुह गुरु वचन लही प[भ]णीसु(स) १ भविक जीव संसय टालिवा, सम्यगदर्शन अजूआलिवा, सूत्र वृत्ति शास्त्र अणुसारि, सागरमतनउ सुणओ विचार. २ हाजा पटलनई पाडइ रह्यां, वचन श्रीविजयसेन गुरु कह्यां, प्रगटिओ मत हवई सागर तणओ, अग्यारमउ भविअण सवि सुणओ. ३ श्रुतलव मद-मत्सरि व्यापीया, ग्रंथ पंचावन ऊथापीया, केई प्रकरण केई अंग उपांग, ग्रंथ रच्यो एक नवलइ ढंगि. ४ सर्वज्ञ शतक ग्रंथ दीधुं नाम, सकल विरोध तणुं जे धांम, वांचि(ची)ओ वंचावि(वी)ओ मान्यो जेणि, गच्छभेद वली पाडि(डी)ओ तेणि. ५ विजयसेन गुरु जाणी करी, गच्छथी सागर दुर्रि(र) करी, सिष्य प्रतिइं सीखामण दीइ, माहरउ ते सागर नवि लीइ. ६ विजयदेवि सागरपख्य करि(री)ओ, तेणि करी दंद बहु विस्तरि(री)ओ, वली अधिक ते माथइ चढ्या, गाढेरा' ते कुमतिं पड्या. ७ छानो ग्रंथ करी राख्यो गोप, गच्छ-परंपर कीधउ लोप, गच्छ चउरासी निंदा कीध, पूर्व सूरिनई गालि ज दीध. ८ नवी परूपणा मांडी इसी, मुग्ध लोकनई हीअडइ वसी, सागर धर्म कहइ ते सार, ते विण नवि लहीइ भवपार. ९ इत्यादिक बहु लोक प्रसिद्ध, वचनविरुद्ध कहइ कुमतइं ली(लि)द्ध, जिनवचन विघटाडइ सवे, आप तणउ मत साचओ लवे. १० सकल धर्म ऊथापइ वली, आप कहावइ श्रुतकेवली, माया केलवी कहइ एणी रीति, मुग्ध लोकनई आवइ चीति. ११ हवइ आगम वचन सांभलउ(ओ), मूंकी निज मनथी आमलओ', राग दोस बइ दूरइं करी, श्रीजिनवचन हियामां धरी. १२ श्रीपन्नवणा वृत्ति मझारि, उपमितभवप्रपंच विचारि, समयसार सूत्र वृत्ति कही, योगशास्त्र सूत्र वृत्ति सही. १३ ।

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