Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 7
________________ सप्टेम्बर - २०१७ पंचकल्लाणं (सिरि उसहदेवसामिणो थोत्तं) - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि १३५ प्राकृत गाथाओमां विस्तरेला आ स्तोत्रमा भगवान ऋषभदेवनां पांच कल्याणकोनुं विशद-विस्तृत वर्णन छे. पहेला बे कल्याणकोना वर्णननी गाथा थोडी छे, पछीनां त्रणनी वर्णनगाथाओ क्रमशः अधिक अधिक छे. ___ कृतिनी छेल्लेथी बीजी कडीमां (१३४) 'धरणिंदनमियदेवाहिदेवनामेण' एवी रीते कर्ताए पोताना नामनुं सूचन कर्यु छे. ते परथी कर्ता- नाम 'पार्श्व' होई शके अथवा 'पार्श्व' शब्दथी शरु थतुं (पार्श्वदेव, पार्श्वचन्द्र इ.) होई शके एम जणाय छे. वर्णन सरस होवा छतां प्रमाणमां मध्यमसरनुं कही शकाय तेवं छे. थोडीक अशुद्धिओ पण छे. कदाच ते लेखक द्वारा थई होय. छेल्ली गाथामां पांच कल्याणकनां नामोमां "चवणं गब्भाहरणं" एवं लखायुं छे, एमां 'गब्भाहरणं' शब्द 'जन्मकल्याणक' माटे लख्यो जणाय छे. आ कृतिने समावती एक ताडपत्र पोथी भावनगर जैन संघ हस्तकना शेठ डोसाभाई अभेचंदनी पेढीना ज्ञानभण्डारमा छे. ते पोथीमां पत्र १४७ थी १५९मां आ कृति छे. सम्भवतः आ पोथीमां आवी विविध कृतिओनो संग्रह होवो जोईओ. अमारी पासे तेनी झांखी झेरोक्स छे, ते परथी नकल तथा सम्पादन करवामां आवेल छे. पंचकल्लाण तित्थं पवयण सुयदेवयं च नमिऊण सव्वभावेणं । कल्लाणपंचएणं आय(इ)जिणिदं नमसामि ॥१॥ चवण-जम्मण-निक्खमण-केवलं पंचमं च निव्वाणं । संखेव-वित्थरेणं अहकम्म(क्कम) कित्तइस्सामि ॥२॥ सिरिनाभिनरिंदसुओ मे(म)रुदेवीनंदणो उसभसामी । जयइ पढमो जि[णि]दो सव्वट्ठ-महाविमाणचुओ ॥३॥

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